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________________ २५ ] मरकण्डिका २०. प्रतिलेख - समाधिमरण की सिद्धि कैसी होगी इत्यादि विषयों का शोधन करना निरीक्षण करना | २१. पृच्छा समाधि के लिये अपने संघ में साधु के आ जाने पर संघनायक संघ से पूछते हैं कि इनको ग्रहण करता है या नहीं ? अर्थात् यह साधु समाधि के योग्य है या नहीं आप इस कार्य में समर्थक हैं या नहीं इत्यादि आचार्य द्वारा पूछा जाना । २२. एक संग्रह - एक आचार्य एक ही क्षपक मुनिको समाधि हेतु संस्तरारूढ करते हैं, एक साथ अनेकों को नहीं । २३. आलोचना - जीवनपर्यंत साधु अवस्था में जो दोष लगे हैं उनको आचार्य के लिये निवेदन कर देना । २४. गुणदोष- आलोचना के गुण दोषों का कथन । २५. शय्या - जहां भक्त प्रतिज्ञा मरण ग्रहण करता है वह स्थान - वसतिका कैसी हो । २६. संस्तर - जिस पर क्षपक लेटता है वह भूमि तृण आदि कैसे हों । २७. निर्यापक - क्षपक की सेवा करने वाले मुनिगण कैसे हों । २८. प्रकाशन - क्षपक को यावज्जीव आहार का त्याग कराने के लिये उसको आहार को दिखाकर आहार से विरक्ति कराना २६. हानि - क्षपक से क्रमशः आहार पानी का त्याग कराना । ३०. प्रत्याख्यान - जीवन पर्यंत के लिये सर्वथा आहार त्याग | ३१. क्षामण-क्षपक द्वारा समस्त संघ से क्षमा याचना | ३२. क्षपणा - क्षपक द्वारा कर्मों की निर्जरा होना । उसका कथन । ३३. अनुशिष्टि-निर्यापक आचार्य द्वारा क्षपक के लिये महाव्रत आदि मूल गुण तथा उत्तर गुणों का उपदेश देना । इसमें सबसे अधिक श्लोक हैं सबसे बड़ा अधिकार है । ३४. सारणा - रत्नत्रय धर्म में क्षपक को प्रेरित करना ।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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