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पंडित पंडित मरणाधिकार करस्थितमिवाशेष लोकालोकं विलोकते । युगपत्तेन बोधेन योगी विश्वप्रकाशिना ॥२१७६॥ ततो वेश्यमानोऽसौ शेषघाति चतुष्टयम् । कुर्वाणो जनतानंदं भ्रमत्येष सुराचितः ॥२१७७॥ विवर्तमानचारित्रो ज्ञानग्यांनभूषितः । शेषकर्मविघाताय योगरोधं करोति सः ॥२१७॥ यहाथषोऽधिकं कर्म जायते त्रितयं परम् । समुद्घातं तदाम्येति तत्समीकरणाय सः ॥२१७६।। प्रायुषा सदृशं यस्य जायते कर्मणां त्रयम् । स निरस्त सद्घमातः शैलेश्यं प्रतिपद्यते ॥२१०॥ यः षण्मासावशेषायः केवलज्ञानमश्नुते । अवश्यं स समुद्घातं याति शेषो विकल्पते ॥२१८॥
कषाय और पापोंसे रहित है, ऐसे विश्वप्रकाशी केवलज्ञान द्वारा हाथमें रखे हुए पदार्थके समान अशेष लोकालोकको सयोग केवलो भगवान् जानते हैं ॥२१७५।।२१७६।।
__ इसतरह केवलज्ञानो भगवान्-शेष बचे चार अघातो कोको वेदन करते हए चतुनिकाय देवों द्वारा पूजित होते हैं तथा दिव्यध्वनि द्वारा समस्त जनताको आनंद प्रदान करते हुए आर्यखण्ड में विहार करते हैं । तदनंतर वर्द्धमान चारित्रवाले ज्ञान दर्शनसे भूषित वे सयोगी जिन शेष कर्मों का नाश करनेके लिये योग निरोध करते हैं ॥२१७७॥२१७८।।
यदि उन केवली भगवान के आय कर्मसे अधिक नामादि तीन कोकी स्थिति है तो उन कर्मोंको आयुके बराबर करने के लिये समुद्घात क्रियाको करते हैं ।।२१७६।।
जिन भगवान के नाम आदि तीन कम आयुके समान प्रमाण वाले हैं वे भगवान समुद्घात नहीं करके हो शैलेश्य भाव अर्थात् अठारह हजार शीलोंके आधिपत्यको प्राप्त करते हैं अर्थात् चौदहवें अयोग केवलो नामके गुणास्थान में आते हैं। जिन मुनिराजको छह मासको प्रायु शेष रहने पर केवलज्ञान प्राप्त हुआ है, वे नियमसे समुद्घात करते हैं और शेष केवली समुद्घात करते भी हैं और नहीं भी करते ।।२१८०।२१८१।।