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बालपंडित मरणाधिकार ।
संयतासंयलो जोवः सम्यग्दर्शनभूषितः । मत्तस्य मरणं प्रोक्तं श्रुतर्बालपंडिलम् ॥२१५०॥ पंचधाणुव्रतं प्रोक्तं त्रिषा प्रोक्तं गुणवतम् । शिक्षावतं चतुर्षा छ धर्मो वेशयतेरयम् ॥२१५१॥ हंसामसूनृतं स्तेयं परनारोनिषेषणम् । विमुचतो महालोभं पंचधाणुव्रतं मतम् ।।२१५२॥
इसप्रकार पंडितमरणके भेद प्रभेदोंका निरूपण किया। अब बालपंडितमरणका वर्णन करूंगा।
पंचम गुणस्थानवर्ती संयतासंयत जीव जो कि सम्यग्दर्शनसे विभूषित है उसका जो मरण है उसे श्रुतज्ञ गणधरादि बालपंडित मरण कहते हैं ॥२१४६।।२१५०।।
पांच प्रकारका अणुव्रत, तीन प्रकारका गुणवत और चार प्रकारका शिक्षाक्त इसतरह बारह व्रतरूप देश संयमीका धर्म कहा गया है ।।२१५१।। हिंसा, झूठ, चोरी, परनारो सेवन और महालोभका त्याग करना अर्थात हिंसा आदि पांच पापोंका स्थूलरूपसे त्याग करना पांच प्रकारका अणुव्रत कहलाता है ।।२१५२॥ दिशा, देश और अनर्थदंडोंका त्याग रूप तीन गुणव्रत कहे गये हैं तथा प्राज्ञ पुरूषों द्वारा शिक्षावत निम्न