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अवीचार भक्त त्याग इंगिनी प्रायोपगमनाधिकार
[ ६२५ शकटाल मुनिको कथापाटलीपुत्र नामको नगरीमें राजानंद राज्य करता था। उसके दो मंत्री थे, एक का नाम शकटाल और दूधनका कारचि : मसाल जैस हल स्वभावी नीति प्रिय था इससे विपरीत वररुचि था। दोनोंका आपस में विरोध था । एक दिन पद्मरुचि नामके यतिराजसे धर्मोपदेश सुनकर शकटाल मंत्रीने जिनदीक्षा ग्रहण को । जैन सिद्धांत का अध्ययन कर उन यतिराजने संपूर्ण तत्त्वोंका समीचीन ज्ञान प्राप्त किया । किसी दिन शकटाल मुनि आहारार्थ राजमहल पधारे । आहार करके वापिस लौट रहे थे कि वररुचिने उन्हें देखा । वररुचि शकटालसे अत्यंत द्वेष रखता था अतः मौका देख उसने राजानंदसे कहा कि देखो। यह नग्न ढोंगी साधु राज महल जाकर क्या क्या पाप कर आये हैं इत्यादि अनेक तरहसे राजाको कुपित किया, राजाने शकटाल मुनिको मार डालनेको आज्ञा दी । कर्मचारी मुनिके तरफ आ रहे थे उन्हें शस्त्रास्त्र सहित आवेश में आते देखकर शकटाल मुनिने निश्चय किया कि ये घोर उपद्रव करने वाले हैं उन्होंने तत्काल चतुराहारका त्याग एवं राग द्वेष कषायका त्यागकर सन्यास ग्रहण किया और शस्त्र द्वारा प्राण त्यागकर स्वर्गारोहण किया ।
शकटाल मुनिको कथा समाप्त ।