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मरणकण्डिका
सुतार्थ पाटलीपुत्रे मातुलेन कथितः । जनाहर्षभसेनोऽथं खानसमति धितः ॥१९४६।। ___ - ---- -----
धर्मसिंह मुनिको कथा-- दक्षिण देश में कोष्ठा तोर (कौशलगिरि नगरके राजावीरसेन और रानी वीरमतीसे दो पुत्र, पुत्री हुए, पुत्रका नाम चन्द्रभूति और पुत्रीका नामचन्द्रधी 'था'। चन्द्र श्रीका विवाह कौशल देशके राजपुत्र धर्मसिंहते-हुआ वोमोना समय -सुखपूर्वक व्यतीत होने लगा | धर्मसिंह प्रत्यंत धर्मप्रिय था, विशाल रज्जका संचालन करते हुए भो मनियोंको आहार दान तथा जिनपूजाको यह अवश्य करता था। किसी दिन दमधर मनिराजसे धर्मोपदेश सुनकर धर्मसिंह नरेसने जिन दीक्षा महल को और तपस्या करने लगे। रानी चंद्रश्रीको बहुत दुःख हुआ। भाई चन्द्रभृति बहिनको दुःखो देखकर धर्मसिंह मुनिको जबरन चन्द्रश्रीके पास ले आया किन्तु धर्मसिंह पुन :-यन में गये और “तपस्या में लीन हुए । कुछ दिन इसीप्रकार व्यतीत हुए । मन्द्रभूतिने किसी दिन वन विहार करते हुए उन मुनिको देखा । मुनिराजने भी अपनी तरफ आते हुए उस अपने साले को देखकर पहिचान लिया उन्होंने सोचा कि यह मुझे तपस्यासे च्युत करेगा । जहां मुनि तपस्या कर रहे थे, वहां वन में पासमें एक हाथीका कलेवर पड़ा 'था, घोरवार "मुनि धर्मसिंह उसी में घुस गये । उन्होंने चार प्रकारके आहारका एवं संपूर्ण कषाय भावोंका त्यागकर संन्यास ग्रहण किया तथा तत्काल श्वासका निरोधकर प्राण छोड़े। इस तरह उन्होंने क्षणमात्रमें उत्तमार्थको साधा और स्वर्गमें जाकर देवपद पाया । वे महामुनि हम सबके लिये समाधिप्रद होवे ।।
धर्मसिंह मूनिकी कथा समाप्त । पाटलोपुत्र नगरी में अपनी पुत्रोके लिये मामा-श्वसुर द्वारा उपसर्ग किये जाने पर ऋषभसेन नामके व्यक्तिने श्वासका निरोधकर सल्लेखना की ॥२१४६।।
दृषभसेन मुनिको कथा-- पाटली पुत्र नगरी में वृषभदत्त वृषभदत्ता सेठ सेठानी रहते थे। उनके पुत्र का नाम वृषभसेन था, वह सर्वगुण और कलाओं में प्रवीण एवं अत्यंत धर्मात्मा था। उसका विवाह अपने मामाकी पुत्री धनश्रीके साथ हुआ था । किसी दिन दमधर नामके मुनिके समीप धर्मोपदेश सुनकर उसने जिनदीक्षा ग्रहण को, इससे धनश्री रात दिन दुःखो रहने