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असार शुक्त त्याग इंगिनी प्रायोपगमनाधिकार
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प्रायोपगमनं केचित्कुर्वते प्रतिमास्थिताः प्रपद्याराधनां देवी मिगिनी मरणं परे ।। २१४३॥
॥ इति प्रायोपगमनं ॥
उपसर्गे सति प्राप्ते दुर्भिक्षे च दुरुत्तरे । कुर्वन्ति मरणे बुद्धि परीवहसहिष्णवः ॥ २१४४॥
कोशलो धर्मसिंहोऽयं ससाध श्वासरोधतः । कोणतीरे पुरे धीरो हित्वा चंद्रश्रियं नृपः ॥। २१४५।।
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कोई मुनि कायोत्सर्ग धारण कर प्रायोपगमन मरणको करते हैं तथा कोई श्राराधना देवीको प्राप्तकर इंगिनी मरणको करते हैं । प्रर्थात् कोई प्रायोपगमन विधिसे सम्यग्दर्शन आदि चार प्रकारकी आराधनाका आराधन कर समाधि करते हैं और कोई मुनिराज इगिनी विधिसे उक्त आराधनाको करते हुए समाधि करते हैं ।। २१४३ ॥ || प्रायोपगमन मरणका वर्णन समाप्त ॥
इसप्रकार पंडित मरण के तीन भेदों में से भक्त प्रत्याख्यानका वर्णन अतिविस्तार पूर्वक तथा इंगिनी और प्रायोपगमन विधिका संक्षेप पूर्वक वर्णन किया गया है ।
आगे कहते हैं कि महान् उपसर्ग आदिके आनेपर उन कारणोंको लेकर भी महामुनि पंडित मरणको करनेमें उत्साहित होते हैं
जिसका निवारण होना अशक्य है ऐसा घोर उपसर्ग आनेपर तथा महान् अकाल पड़ने पर परीषहोंको जीतने वाले योगीश्वर समाधिमरण में अपनो बुद्धिको लगाते हैं ।। २१४४ ।।
आगे जिन्होंने अकस्मात् आये हुए उपसर्ग श्रादिके निमित्तसे तत्काल प्राराधनापूर्वक पंडित मरणको प्राप्त किया था उनका कथन करते हैं
कौशलाधिपति धर्मसिंह नामके धीर वीर राजाने कोष्ठा तीर नामके नगर के free अपनी पत्नी चन्द्रश्रीका त्यागकर प्रवास निरोध द्वारा समाधिमरणको साधा था ।।२१४५ ।।