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मरकण्टका
प्रस्तावना -- श्रर्हलिंग, शिक्षा, विनय, समाधि, अनियतबिहार, परिणाम, उपथित्याग, श्रिति, भावना, सल्लेखना, दिक, क्षमण, अनुशिष्टि, परगणचर्या, मार्गणा, सुस्थित, उपसर्पण, निरूपण, प्रतिलेख, पृथ्छा, एकसंग्रह, आलोचना, गुणदोष, शय्या, संस्तर, निर्यापक, प्रकाशन, हानि, प्रत्याख्यान, क्षामण, क्षपणा, अनुशिष्टि, सारणा, कवच, समता, व्यान, लेश्या, फल, आराधक त्याग, लक्षणानि चत्वारिंशत्सूत्राणि ॥ ७२ ॥
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अब उन चालीस सूत्रों का नाम निर्देश करते हैं
अर्थ - अर्ह ? लिंग २ शिक्षा ३ विनय ४ समाधि ५ अनियतविहार ६ परिणाम ७ उपधि त्याग व श्रिति ९ भावना १० सल्लेखना ११ दिशा १२ क्षमण १३ अनुशिष्टि १४ परगणचर्या १५ मार्गणा १६ सुस्थित १७ उपसर्पण १८ निरूपण १६ प्रतिलेख २० पृच्छा २१ एक संग्रह २२ आलोचना २३ गुणदोष २४ शय्या २५ संस्तर २६ निर्यापक २७ प्रकाशन २८ हानि २६ प्रत्याख्यान ३० क्षामण ३१ क्षपणा ३२ अनुशिष्टि ३३ सारणा ३४ कवच ३५ समता ३६ ध्यान ३७ लेश्या ३८ फल ३६ और अन्तिम है ४० आराधक त्याग ॥७२॥
विशेषार्थ - भक्त प्रत्याख्यान नामके मरणका वर्णन करने के लिये चालीस प्रकरण - अधिकार या विषय आते हैं, जिनका कि ऊपर नाम निर्देश किया, इन सबका आगे बहुत ही विस्तार पूर्वक कथन है । यहाँ प्रति संक्षेप से लक्षण मात्र बतलाते हैं
१. अर्ह - भक्त प्रत्याख्यानमरण को धारण करने में जो मुनि योग्य है उसे को अर्ह कहते हैं अर्थात् रोग आदि के कारण जिसका मरण सन्निकट है, ऐसे साधु समाधि के योग्य होने से 'अहं' कहते हैं अर्थात् जिस अधिकार में इस प्रकार समाधि के योग्य कौन साधु है इसका वर्णन होता है वह अर्ह नामका अधिकार या प्रकरण है ?
२. लिंग - दि० जैन मृतिका वेष लिंग किस प्रकार होता है इसका वर्णन इस प्रकरण में है अर्थात् पोछी धारण, नग्नता, तैलादिके संस्कार से रहितता इत्यादि का इसमें कथन है ।
में होगा ।
३. शिक्षा - श्रुतज्ञान का अभ्यास ।
४. विनय - गुरुजनों का सन्मान, ज्ञान विनय आदि का कथन इस अधिकार