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________________ मरणकपिडका नानाविधासु जातासु लब्धिष्वेष महामनाः । न किंचित्सेवते मातु विरागीभूतमानसः ॥२१२६॥ वेदनानां प्रतीकारं क्षुदादीनां च धोरधीः । न जातु कुरुते किचिन्मौनव्रतमवस्थितः ॥२१३०॥ उपवेशोऽन्यसूरीणामिगिनीमरणेऽपि सः । त्रिदशर्मानुषैः पृष्ठो विधत्ते धर्मवेशनाम् ॥२१३१।। इंगिनीमरणेऽप्येवमाराध्याराधनां बुधाः । केचित्सिध्यन्ति केचिच्च सन्ति वैमानिकाः सुराः ।।२१३२॥ छंद-प्रये नीइंगिनीमति सुखानुषंगिणी निर्मला कषायनाशकौशलाम् । पजिता भजति विघ्नजितां ये नरा भवंति तेऽजरामराः ।।२१३३॥ ॥ इति इंगिनीमरणम् ॥ नहीं करते हैं ।।२१२९॥ धीर बुद्धिवाले मौनव्रतको स्वीकार करनेवाले वे मनि भूख, प्यास, उष्णता आदि की वेदना होनेपर कभी भी उस वेदनाका किचित् भी प्रतीकार नहीं करते हैं ।।२१३०।। इंगिनी मरणको प्रतिज्ञा वाले मुनिराज देव या मनुष्य द्वारा प्रश्न किये जानेपर धर्मोपदेश देते हैं ऐसा किन्हीं आचार्योका कहना है ।।२१३१।। ____ इसप्रकार उपर्युक्त विधिसे इंगिनी नामके समाधिमरणमें चार प्रकारकी आराधनाको करनेवाले उन बुद्धिमान मुनियों में से कोई तो मोक्षको प्राप्त करते हैं और कोई वैमानिक देव होते हैं अर्थात् इंगिनी मरण करने वाले अपने परिणामोंके अनुसार सिद्धगति या देवगति प्राप्त करते हैं ।।२१३२।। यह इंगिनो मरण स्वर्ग तथा अपवर्ग के सुखोंको देनेवाला है, निर्मल है, कषायों का नाश करने में कुशल है, जो योगोराज विघ्न रहित ऐसे इस मरणको पूजते हैं अर्थात स्वयं धारण करते हैं वे अजर-अमर सिद्ध होते हैं ॥२१३३।। इसपकार इंगिनी मरणका वर्णन पूर्ण हुघा ।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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