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________________ [६०३ ध्यानादि अधिकार धन्या महानुभायास्ते भक्तितः क्षपकस्य यः । ढोकिताराधना पूर्ण कुभिः परमादरम् ॥२०७७॥ परस्य दौकिता पेन धन्यस्याराधनाङ्गिनः । निविघ्ना तस्य सा पूर्णा सुखं संपाते मृतौ ॥२०७८।। स्नाति लामती से कानातले । पापपंकेन मुच्यन्ते धन्यास्तेऽपि शरीरिणः ॥२०७६।। पर्वतादीनि तीर्थानि सेवितानि तपोधनः । जायंते यदि सत्तीर्थ कथं न क्षपस्तदा ॥२०८०॥ निर्यापक की स्तुतिवे महानुभाव धन्य हैं जिन्होंने भक्तिसे क्षपककी आराधना परमादरको करते हुए पूर्ण प्राप्त करायी है । अर्थात् क्षपक द्वारा चार आराधनाको करते समय भली प्रकारसे विनय एवं भक्ति पूर्वक उस आराधनामें सहायता की है-क्षपककी वैयावृत्यको है वे धन्य हैं । जो मुनिगण महाधन्य ऐसे अन्य क्षपक मुनिके पाराधनाको करनेमें सहायता देते हैं आराधनाको प्राप्त करवाते हैं उन मुनियोंके मरण काल में नियमसे सख शांति एवं निविघ्नतासे चार आराधना पूर्णरूपसे प्राप्त होती है। अर्थात अन्यकी सल्लोखना करने में जो सहायता देता है उसको सल्लेखना नियमसे होती है उसमें कोई बाधा नहीं आती ॥२०७७॥२०७८।। क्षपक मुनिका दर्शन वंदन करनेवाले भव्य पुण्यशाली हैं ऐसा कहते हैं कर्मरूपी कीचड़को धोनेवाले-उस कीचड़को दूर करनेवाले क्षपक रूप तीर्थमें जो भब्धजोव स्नान करते हैं वे धन्य हैं वे भी पापरूप कीचड़से छूट जाते हैं ।।२०७१।। क्षपक मुनितीर्थ स्वरूप कैसे हैं सो बताते हैं तपस्वी मनिराजों द्वारा सेवित पर्वत आदि स्थान तीर्थ माने जाते हैं अर्थात जहां पर पर्वत, गुफा आदि स्थानोंपर बैठकर मुनिराज ध्यान करते हैं आतपनादि योग धारण करते हैं श्रेष्ठ श्रुतज्ञान अवधिज्ञान आदि प्राप्त करते हैं उन स्थानोंको तीर्थ माना जाता है, वे पर्वतादि पवित्र पूज्य होते हैं । तो भक्त प्रत्याख्यान मरण रूप महा
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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