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________________ ६०२ ] मरण कण्डिका वैमानिकः स्थलं यातो ज्योतिष्को व्यंतरः समम् । गर्ता च भावनस्तस्य गतिरेषा समासतः ॥२०७२।। छंदः उपजातिइदं विधान जिननाथदेशितं ये कुर्वते पहनते त्र भक्तितः । प्रादाय कल्याणपरंपरामिमे प्रयांति निष्ठामपनीतकल्मषाम् ॥२०७३।। ॥ इति आराधकांग त्यागः ॥ भगवतोऽत्र ते शूराश्चतुर्बाराधनां मुशा। संघमध्येप्रतिज्ञाय निर्विघ्नां साधयन्ति ये ॥२०७४।। से धन्या जानिनो धीरा लब्धनिःशेषचितिताः । यरेषाराधना देवी संपूर्ण स्ववशीकृता ॥२०७५॥ कि न तै वने प्राप्तं वंदनीयं महोदयः । लोलयाराधना प्राप्ता परेषा सिद्धिसंफली ॥२०७६।। इन समस्त विषयोंकी जो महामना श्रद्धा करते हैं, इन सपूर्ण आराधना विधिको भक्तिसे स्वयं करते हैं, वे कल्याण परंपरा-मनुष्य तथा देवोंके सुखको प्राप्तकर अंतमें कर्ममलों को दूरकर सिद्धालयमें निवास करते हैं-मोक्षको प्राप्त कर लेते हैं ।।२०७२।।२०७३।। इसप्रकार अाराधक अंग त्यागनामा चालीसवां अधिकार पूर्ण हुआ। चार प्रकारको आराधनाको करनेवाले आराधक मुनिजनोंको प्रशंसा-स्तुति करते हैं वे मुनिराज शूर हैं, पूज्य हैं, जिन्होंने संघके मध्य में चार प्रकारको आराधना को हर्षपूर्वक स्वीकार करके-समाधिमरण करनेको प्रतिज्ञा लेकरके उसको निर्विघ्न तथा पूर्ण किया है । वे ज्ञानी मुनिजन धन्य हैं, धीर हैं जिन्होंने अपने चितित समस्त संयम तप आदिको पाया है । जिनके द्वारा यह संपूर्ण आराधना देवी स्ववशमें कर ली गयी है । जिन्होंने लीलामात्र से सिद्धि रूप फलको देनेवालो यह आराधना प्राप्त करली है उन महापुरुषोंने इस विश्व में किस वंदनीय श्रेष्ठ पदको नहीं पाया ? सब कुछ श्रेष्ठ वंद्य पदको पाया है । क्योंकि सर्व वंद्य पदोंमें महावंद्य जो सिद्धिपद है उसको जिन्होंने पाया उन्होंने सर्व वंदनीय पद पाया हो है ।।२०७४।।२०७५॥२०७६।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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