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ध्यानादि अधिकार
गत्वा सुखविहाराय संघस्य विधिकोविदः । द्वितीयेऽह्नि तृतीय का द्रष्टव्य तत्कलेवरम् ॥५७६i यावन्तो वासरा गात्रमिदं तिष्ठत्यविक्षतम् । शिवं तावन्ति वर्षाणि तत्र राज्ये विनिश्चितम् ।।२०६६।। प्राकृष्य नीयते यस्यां तवंगं श्वापदादिभिः । विह यज्यते तस्यां संघस्य ककुभिस्फुटम् ॥२०७०॥ यदि तस्य शिरो वन्ता दृश्येरन्नगमनि । तदा कर्ममलान्मुक्तो ज्ञेयः सिद्धिमसोमतः ॥२०७१॥
समाधिमरणके होनेके अनंतर संघके सुखपूर्वक विहार के लिये बुद्धिमान मुनियों को दूसरे दिन या तीसरे दिन उक्त निषद्यास्थल पर जाकर उस क्षपकके शवको देखना चाहिये । अर्थात् ज्ञानी मुनिजन निषद्या स्थान पर जाकर देखते हैं कि क्षपकका शव किस स्थितिमें है ।।२०६८।। जितने दिन तक क्षपकका शरीर पक्षी आदिके द्वारा क्षत विक्षत नहीं हुआ है उतने वर्ष तक उस देशके राज्य में नियमसे सुख शांति रहती है ।।२०६९।। क्षपकका कलेबर जंगली पशु पक्षो द्वारा जिस दिशामें खींचकर ले जाया गया हो उस दिशामें संघका विहार करना उचित होता है ॥२०७०॥
भावार्थ-जिस दिशामें कलेवरको पक्षी आदि लेगये हैं उस दिशामें क्षेम है ऐसा जानकर संघ उस तरफ विहार करे ।
पक्षी आदि जीव यदि क्षपकका मस्तक या दांत पर्वत पर लेगये हैं तो समझना चाहिये यह क्षपक मुनि कर्ममलोंसे मुक्त होकर सिद्धिको प्राप्त कर चुका है ॥२०७१॥
यदि क्षपफके मस्तकको उच्चस्थान पर पक्षी आदि लेगये हों तो क्षपक वैमानिक देव हआ है ऐसा समझे । समभूमि पर लेगये हों तो ज्योतिषी और व्यतर देव हुआ ऐसा समझे तथा किसी गर्त-गढ्ढे में मस्तकको ले गये हैं तो भवनवासी देव हुमा है ऐसा निश्चय करे । इसप्रकार शवको या उसके अवयवको पक्षी आदि द्वारा किस स्थानपर ले जाया गया है उसको देखकर क्षपककी गतिको ज्ञात करना चाहिये । इसप्रकार क्षपक का समाधिमरण, उसके मृत शरीरका क्षेपण इत्यादि विधिको जिनेन्द्र देवने कहा है,