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________________ ध्यानादि अधिकार शांतिर्भवति सर्वेषामुपे क्षपके मृते । मध्यमे मृत्युरेकस्प जायते महति द्वयोः ॥२०६४॥ महन्मध्य नक्षत्रे मृते शांतिविधीयते । यस्तो गणरक्षार्थ जिनाचकरणादिभिः || २०६५।। [ ५ee अब वर्तमान में श्रावकोंके मध्य में मंदिर धर्मशाला आदि स्थानोंपर मुनिजन रहते हैं, यहां किसी मुनि आदिका सल्लेखना आदि विधिसे मरण होता है तो श्रावकगण काष्ठका विमान जैसा तैयार करके उसमें साधुके शवको स्थापित कर योग्य प्रासुक भूमिपर लेजाकर दाह संस्कार करते हैं । एवं उस स्थान पर छत्री, चबूतरा आदि बना देते हैं । सो यह कालके अनुसार होनेवाली व्यवस्थायें हैं । जघन्य आदि नक्षत्र में क्षपकका मरण होवे तो क्या फल होगा सो बताते हैं यदि क्षपकका मरण अल्प - जघन्य नक्षत्र में होता है तो सर्वसंघ प्रजा आदिको शांतिदायक है । मध्यम नक्षत्र में क्षपकने देह छोड़ी है तो एक मुनिकी मृत्यु होती है और उत्कृष्ट नक्षत्रमें क्षपककी मृत्यु हुई है तो दो मुनियोंका भरण होगा || २०६४ || विशेषार्थ — कौनसे नक्षत्र में क्षपकने प्राण छोड़े हैं यह देखकर संघके भविष्यका ज्ञान होता है । नक्षत्र तीन प्रकारके हैं जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । जो पंद्रह मुहूर्त्तके होते हैं उन नक्षत्रोंको जघन्य नक्षत्र कहते हैं वे छह हैं- शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, स्वाति, आश्लेषा और जेष्ठा । इन नक्षत्रोंमेंसे किसी नक्षत्र में या उनके अंशपर क्षपककी समाधि हुई है तो संघ क्षेमकुशल होगा । तीस मुहूर्त्तके नक्षत्रको मध्यम नक्षत्र कहते हैं ये पंद्रह हैं-- अश्विनी, कृतिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, हस्त, चित्रा अनुराधा, मूल, श्रवण, घनिष्ठा और रेवती । इन नक्षत्रोंमें या इनके अंशों पर मरण होगा तो एक मुनिका मरण होगा । पैंतालीस मुहूर्त के नक्षत्र उत्कृष्ट नक्षत्र कहलाते हैं, ये छह हैं- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा इन नक्षत्रों में या इनके अंशोंपर मरण होवे तो निकट भविष्य में दो मुनियोंकी मृत्यु होगी । उत्कृष्ट नक्षत्र और मध्यम नक्षत्र में यदि समाधिमरण होवे तो क्या करना चाहिये सो कहते हैं
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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