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________________ ५६८ मरणकण्डिका ग्रामस्याभिमुखं कृत्वा शिरस्त्याज्यं कलेवरम् । उत्थानरक्षणं कतु मस्तकं कियते तथा ॥२०६३॥ विषमता हो तो श्रेष्ठ मुनिका मरण या रोग एवं अंतभागमें-नीचेके भागमें संस्तर होवे तो सामान्य मुनिका मरण या उन्हें रोग होगा ।।२०६२।। ___ इसप्रकार शव क्षेपणका स्थान भली प्रकारसे देखकर उसे सम करके ग्रामके तरफ मस्तक करके शरीरको रखना चाहिये । ग्रामके तरफ मस्तक करनेका अभिप्राय यही है कि उस शवमें कदाचित भूत प्रविष्ट हो और वह दौड़े तो ग्रामकी तरफ नहीं जावे। इसतरह ग्रामकी रक्षा करने के लिये मस्तक वैसा किया जाता है। यह बात पहले शवको लानेको विधिमें भी कही है ॥२०६३॥ विशेषार्थ-क्षपकके समाधि होने के पश्चात् क्या-क्या कर्तव्य विधि है उसको बताया जा रहा है । क्षपक मुनिका समाधिमरण होनेपर वैयावृत्य करनेवाले मनि उस शवको ले जाकर प्रासुक समभूमिमें क्षेपण करते हैं । वसतिकासे नैऋत, दक्षिण और पश्चिम इन तीन दिशामें लेजाना चाहिये । शव स्थापित करनेको भूमिपर घास आदि का संस्तर करना चाहिये वह भूमि व संस्तर पूर्णतया समान होना चाहिये । निषद्या स्थानपर ले जाते समय लेजाने वाले मुनियोंको पीछे देखना, रुकना वापिस लौटना सर्वथा मना है । समान संस्तर पर ग्राम तरफ मस्तक करके शवको लिटाना चाहिये । शवके मिकट पोछी भी रखनी चाहिये । पीछीको शवके पास रखनेका उद्देश्य यह है कि जिसने सम्यक्त्व की विराधना करके मरणकर देव पर्याय पायी है । वह पीछीके साथ अपना देह देखकर मैं पहले भवमें मुनि था ऐसा जान सकेगा। इसप्रकार समाधि करनेवाले मुनिके शवको स्थापित करनेको विधि है । यदि आर्यिका क्षुल्लक, क्षुल्लिका ऐलक, प्रती ब्रह्मचारी आदि ने समाधिपूर्वक देह छोड़ी है अथवा उनका मरण हुआ है तो उनके शवको पालकी-विमान में रखकर संस्तर सहित बांधकर ग्राम तरफ मस्तक करके पूर्वोक्त विधिसे ले जाना चाहिये । एवं पूर्वोक्त विशेषण विशिष्ट भूमि संस्तरमें उसी विधिसे स्थापित करना चाहिये । प्राचीन कालमें वनोंमें मुनिजन निवास करते थे, वहांपर सल्लेखना आदि विधिसे किसी मुनि-क्षपकका मरण होनेपर अन्य मुनि उस क्षपकके शवको योग्य प्रासुक भूमि में स्वयं ले जाकर स्थापित कर आते थे।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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