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ध्यानादि अधिकार
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क्षिप्रमानाम गच्छंति नीटिदाबाना पुरा : निवर्तनमवस्थानं त्यक्त्वा पूर्वावलोकनम् ॥२०५८।। पुरोगन्तव्य मेकेन गृहोतकुशमुष्टिना । पूर्वावलोकनस्थाननिवर्तनविजिना ॥२०५६।। कृत्यस्तत्र समस्तेन संस्तरः कुशधारया । अच्छिन्नया सकृद्देशे वीक्षिते समपातया ॥२०६०॥ स चूर्णः केशरर्वापि कुशाभाये विधीयते । समानः सर्वतोऽच्छिन्नो धीमता विधिनासकृत् ॥२०६१।। मादौ मध्येवसाने च विषमो पवि जायते । प्राचार्यों वषभः साधुर्मृत्यु रोगमथाश्नुते ।।२०६२॥
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जाना चाहिये । ले जाते समय शवका मस्तक ग्रामके तरफ होने चाहिये (पैर जिसस्थानपर ले जा रहे हैं उधर करना चाहिये) शव का मस्तक ग्रामको तरफ इसलिये करते हैं कि कदाचित वह शव उठेगा (भूतके प्रविष्ट होनेसे) तो ग्रामकी तरफ नहीं दौड़ेगा । विमानमें शवको लिटाकर लेजाते समय शीघ्र चलना चाहिये । रास्ते में रुकना नहीं चाहिये, आगेका मार्ग देखते हुए चलें,पोछे लौटकर नहीं देखें । जो मार्ग पहले देखाहो उसमार्गसे लेजाना चाहिये। उस शबके आगे एक व्यक्ति मुट्ठी में कुशा लेकर चले, वह पुरुष भी पीछे मुड़कर न देखे न मार्ग में ठहरे 1 जिस स्थान पर शवको ले जाना है वह पहलो देखा हो, यहाँपर समान भूमि रूप संस्तर उस आगे जाने बालो व्यक्तिको करना चाहिये । कुशा-घासके द्वारा अंतराल रहित समान रूप संस्तर बनाना चाहिये । यदि घास नहीं हो तो चूर्ण केसर चावल आदिसे चारों ओरसे छेद रहित समान ऐसा संस्तर बुद्धिमानको करना चाहिये । संस्तर विषम नहीं होना चाहिये ।।२०५६।।२०५७।२०५८॥२०५६।२०६०।२०६१।।
___ जहांपर शवको स्थापित करना है वह भूमि एवं मस्तर विषम हो तो क्या हानि है यह बताते हैं
ऊपरो भागमें, मध्यमें और अंतमें यदि संस्तर में विषमता होवे तो क्रमशः आचार्य, श्रेष्ठ मुनि और सामान्य मुनिका मरण होगा या रोग होगा। अर्थात् ऊपरी भागमें संस्तर भूमि विषम हो तो प्राचार्यका मरण होगा या उन्हें रोग होगा । मध्यमें