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________________ ५९६ मरणकण्डिका यस्योपकरणं किंचित्कृत्वा यांचा यवाहतम् । कृस्वा संबोधनं सर्व तत्तस्याप्य विधानतः ॥२०५५॥ प्रसिद्धो यदि संन्यासः स्थानरक्षायिका पवि ।। विपन्ना विधिना कार्या तदानी शिक्षिकोत्तमा ॥२०५६।। संस्तरेण सम बद्धवा मृतक विधिना इदम् । विधायोत्थानरक्षार्थ प्रामस्य विमुखं शिरः ॥२०५७॥ क्षपकके शवका छेदन बंधन नहीं करनेपर उस देहमें कोई कोतुहली देव प्रविष्ट हो भयंकर चेष्टायें कर सकता है । अर्थात् जिसका मृतक कलेवरमें क्रीड़ा करनेका स्वभाव है ऐसा कोई भूत आदि व्यंतर उस शरीरमें प्रविष्ट हो जायगा उस प्रेतको लेकर दौड़ना कोड़ा आदि करना प्रारंभ करेगा और इस कार्यको देखकर कोई बालमुनि या भोरुमुनि भयभीत होवेंगे । या मरणको भी प्राप्त हो सकते हैं । अतः हाथ आदिकी अंगुलिका छेदन बंधन करना आवश्यक है ॥२०५४।। मत क्षपकके शरीरका क्षेपण करनेके अनंतर क्या करना सो बताते हैं--- क्षपकके समाधिमरणके पश्चात् समाधिको सिद्धि लिये पाटा, चटाई, कमंडल आदि उपकरणोंको याचना करके जो लाये गये थे अथवा कुछ तैयार किये थे उन पदार्थोंको जो-जो जिसके हों उस उसको उस स्वामीके लिये कहकर वापिस दे देना चाहिये । अर्थात् यह वस्तु अब संघमें उपयोगी नहीं है आपले जाईये इसतरह कहकर बस्तुके मालिकको अर्पित कर देवें ॥२०५५। मुनियोंके समाधिमरण होनेपर उनके शवको वैयावृत्य करनेवाले मुनिराज योग्य भूमिमें ले जाकर क्षेपण करते हैं ऐसा वर्णन किया । यदि आर्यिका क्षुल्लक आदि का विधिपूर्वक समाधिमरण होये तो उनके शवको किसप्रकार ले जावे, कौन ले जावे ? इत्यादि विधिका आगे प्रतिपादन करते हैं आयिकाका सल्लेखना विधिसे मरण होनेपर तथा क्षुल्लक व्रती धावक आदिका समाधिमरण होनेपर उनके शवको लेजाने के लिये उत्तम पालकी-विमान तैयार करना चाहिये । फिर संस्तरके साथ उसे मृतक विधिपूर्वक दृढ़ बांधना, विमानमें लिटाकर ले
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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