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ध्यानादि अधिकार
क्रमेण फलमेतासु स्पर्द्धा राटश्च जायते । मेवश्चापि तथा व्याधिरन्यस्याप्यपकर्षणम् ॥। २०५० ॥ यदेव म्रियते काले स्यजनीयस्तवैव सः I वेलायां विधातव्या छेदबंधनजागराः ।।२०५१ ।। भोरुशैक्षगरिग्लानबालवृद्ध तपस्विनः I पाकृत्या पारधीश जितनिम्राः प्रजाग्रतिः ।। २०५२ ।। कृतकृत्या गृहीतार्थी महाबलपराक्रमाः । हस्तांगुष्ठादिदेशेषु बंधं द्येवं च कुर्वते ॥२०५३ विधीयते न यद्येवं तवा काचन देवता । कलेवरं तवादाय विधत्ते भीषण क्रियां ॥। २०४४ ॥
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होनेपर कलह, पूर्व दिशा में निषद्या होने से संघ में फूट, उत्तर दिशा में होने से रोग और ईशान दिशामें निषद्या होनेसे संघ में खींचातानी होगी ||२०४६ ॥२०५०।।
क्षपकका मरण जब होवे उसी वक्त उसके शवको लेजाना चाहिये और कदाचित वेला [रात्रिमें] मरण होवे तो शवका छेदन बंधन [ अंगुली का ] करना चाहिये और जागरण करना चाहिये ।। २०५१ । ।
क्षपकके शव के निकट जागरण करने वाले साधु कैसे होना चाहिये इस बातको बताते हैं-
जो मुनि भीरु - डरपोक हैं तथा शैक्ष-अध्ययनशील हैं, रोगी बालवृद्ध मोर अधिक तपस्या करने वाले हैं ऐसे साधुओंको क्षपकके शव के पास जागरण नहीं करना चाहिये | जो अपार धैर्यशाली हैं जिन्होंने निद्वाको जीता है ऐसे साधु मृतक क्षपकके निकट जागरण करते हैं ।। २०५२ ।। जिन्होंने क्षपककी सेवा पूर्वमें अनेकों बार की है आगम के अर्थको भली प्रकार जानते हैं, महाबल और पराक्रमी हैं ऐसे साधु मृतक क्षपक के हाथ या पैर के अंगुष्ठ या अंगुलीको छेदते हैं और बांधते हैं ||२०५३ ||
उक्त छेदन और बंधनको यदि न किया जाय तो क्या दोष होगा सो बताते हैं