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मरणकाजको
निषद्या नातिदूरस्था विविक्ता प्रासुका घना। कर्तव्यास्ति परागम्या बालवृद्धगणोचिता ॥२०४६॥ वसते ते भागे दक्षिण पश्चिमेऽपि वा। निषधका स्थिता या सा प्रशस्ता परिकीर्तिता ॥२०४७।। सर्वस्यापि समाधान प्रथमायां सथान्यतः । पाहारः सुलभोऽन्यस्यां भवेत्सुखविहारिता ॥२०४८।। तवभावेऽनलाशायां वायथ्यायां हरेविशि । निषद्यकोत्तरस्यां वा मतेशानस्य वा दिशि ।।२०४६।।
जहांपर क्षपकका शव क्षेपण करना है बह स्थल कैसा होना चाहिये इस विषय का प्रतिपादन करते हैं
वह निषद्या स्थल नगर आदिसे प्रति दूर नहीं होना चाहिये, विविक्त-जन कोलाहल से दूर होना चाहिये, प्रासुक एवं धन-ठोस भूमिरूप जिसमें पोल आदि न हो एसा चाहिये बिल आदिसे रहित होना चाहिये, मिथ्यादृष्टिको अगम्य तथा बालवद्ध साधु समुदाय बहीं पहुंच सके इसप्रकार का होना चाहिये ।।२०४६॥
निषद्या की दिशाजिस वसतिकामें क्षषकको समाधि हुई है उससे नैऋत दिशामें या दक्षिण अथवा पश्चिम दिशामें निषद्या बनाना प्रशस्त शुभ माना है ।।२०४७।।
निषद्या का दिशानुसार फलनैऋत दिशामें निषद्या स्थल होवे तो सर्व संघका समाधान-हित होता है । तथा दक्षिण दिशामें निषद्या होनेसे आहार सुलभ हो जाता है और पश्चिम दिशाकी निष द्या होनेपर संघका सुखपूर्वक विहार होता है । पुस्तक आदिका लाभ भी होता है ।।२०४८।।
पूर्वोक्त नैऋत आदि दिशाओंमें निषद्या स्थल प्राप्त न हो सके और आग्नेय, धायथ्य, पूर्व, उत्तर या ईशान दिशामें निषद्या कर लेवे तो हानि होगी। आगे उस हानिको बताते हैं-आग्नेय दिशामें निषद्या होवे तो संघमें स्पर्धा पैदा होगी । वायव्य में