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ध्यानादि अधिकार
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बहुनात्र किमुक्त न यत्सारं भुवनत्रये । प्राराध्याराषनां देवीं लभते तन्मनीषिणः ।।२०२१।। भुक्त्वा भोग च्युताः सन्तो भूत्या भुवि नरोत्तमाः । विहाय महती भूति भूत्वा सिध्यन्ति साधवः ॥२०२२।। धुतिस्मृतिमतिश्रद्धावीर्यसंवेग भागिनः । परोषहोपसर्गाणां जेतारो विजितेन्द्रियाः ॥२०२३॥ सयथाख्यातचारित्राः पवित्रज्ञानदर्शनाः । विशोध्य मलिना लेश्यां शुद्धध्यानविद्धिमः ॥२०२४॥ शुक्ललेश्यांगनाश्लिष्टाध्वस्तनिःशेषकल्मषाः । भवन्ति सहसा सिद्धा भवनोसमवंदिताः ॥२०२५॥
----.. -. ___ अधिक कहनेसे क्या लाभ ? इस भुवनत्रयमें जो भो सारभूत वस्तु है, सुख है, वह सब ही आराधनादेवीकी पाराधना करके बुद्धिमान मुनिजन प्राप्त करते हैं ॥२०२१॥
आराधक मुनि समाधि करके स्वर्गमें जाते हैं वहां देव पर्याय में दिव्य भोगको भोगकर वहांसे च्युत होनेपर पृथिवीपर मध्यलोकके आर्यभूमिमें मनुष्यों में महान् ऐसे " श्रेष्ठ मनूष्य-चक्रवर्ती, बलदेव आदि होते हैं पुनः उस मनुष्य संबंधी महान विभूतिका त्याग करके जिनदीक्षा ग्रहणकर सिद्ध हो जाते हैं ।।२०२२॥
धृति, स्मृति, मति, श्रद्धा, बोर्य और संवेगगुणोंसे संपन्न, परीषह और उपसर्गों को जीतनेवाले, इन्द्रिय विजयी यथाख्यात चारित्रको धारण करनेवाले, पवित्र है सम्यग्दर्शन ज्ञान जिनका, ऐसे मुनिगण, अशुभ लेश्या (कृष्णादि) का शोधन करत्यागकर शुद्ध ध्यानको बढ़ानेवाले तथा शुक्ल लेश्यारूपो स्त्रीसे आलिंगित अर्थात् शुक्ल लेश्याके धारक और नष्ट कर दिया अशेष कर्मोंको जिन्होंने ऐसे होकर शोघ्र ही तीन लोक में उत्तम और वंदित सिद्ध भगवान बन जाते हैं । अर्थात् मुनि शुक्ल लेश्याको धारण करके शुक्लध्यान द्वारा कर्मोंका नाशकर सिद्ध प्रभु होते हैं ॥२०२३।।२०२४॥ ।।२०२५।।