SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 626
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरणकण्डिका विशुद्धदर्शनशानाः सयबाल्पातसंयमाः । शश्वनिर्मललेश्याका बर्द्धमानतपोगुणाः ॥२०१६॥ प्रदोनमनसो मुक्त्वा कचारमिव विग्रहम् । देवेंद्रचरमस्पान प्रपद्यन्ते बुधाचिताः ॥२०१७॥ वर्यरत्नत्रयोद्योगाः कषायारातिमद्दिनः । संति लोकांतिका देवा देहोद्योतितपुष्कराः ॥२०१८॥ ऋद्धयः संति या लोके यानींद्रियसुखानि च । क्षपकास्तानि लप्स्यन्ते सर्वाण्येष्यस्यनेहसि ॥२०१६॥ जधन्यारा ऐत्री तेजोदेश्या वयाः । आराध्य क्षपकाः संति सौधर्मादिषु नाकिनः ॥२०२०॥ जो विशुद्ध ज्ञान दर्शन वाले हैं यथाख्यात संयमी हैं, सदा निर्मल लेश्याको धारण करने वाले हैं, वर्द्धमान तप गुणोंसे संयुक्त हैं बुद्धिमान द्वारा पूजित हैं ऐसे श्रेष्ठ मुनिराज दीनता रहित होकर कचरेके समान शरीरका त्याग करते हैं और देवेन्द्रके चरम स्थान ( सोलहवें स्वर्गका देवेन्द्रपद) प्राप्त करते हैं ॥२०१६।।२०१७।। जिन्होंने श्रेष्ठ रत्नत्रयकी आराधनाका बड़ा भारी उद्योग किया है एवं कषाय शत्रका मर्दन किया है ऐसे मुनिराज लौकान्तिक देव होते हैं कैसे हैं वे देव ? अपनी शरीरकी कान्तिसे व्याप्त किया स्वर्गको जिन्होंने ऐसे हैं । अथवा इस कारिकाका अर्थ इस प्रकार भी है--जिन्होंने पूर्व भवमें रत्नत्रयको आराधना को थो एवं आगामी भवमें नियमसे श्रेष्ठ रत्नत्रयका उद्योग करेंगे तथा कषाय शत्रु जीतने वाले और देहकी कांति से स्वर्गको उद्योतित करनेवाले एवं गुण विशिष्ट लोकान्तिक होते हैं, ऐसे लोकांतिक देव पदको आराधना करनेवाले मुनि प्राप्त करते हैं ॥२०१८॥ इस संसार में जो भी ऋद्धियां हैं, जो इन्द्रियोंके सुख हैं उन सभीको क्षपक मूनि आगामीकालमें प्राप्त करेगा ।।२०१६।। इसप्रकार मध्यम आराधनाका फल बतलाया । मध्यम आराधना करनेवाले को शुक्ल या पद्य लेश्या होती है । जघन्य आराधनाका फलपीत लेश्यावाले क्षपक मुनि जघन्य रूपसे आराधना देवीकी आराधना करके सौधर्म प्रादि स्वर्गों में देव होते हैं ।।२०२०।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy