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बालबालमरणाधिकारः
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संयतोऽसंयतो वा यो, मिथ्यात्वकलुषीकृतम् । विवधात्यधमः कालं, कस्याप्याराधको न सः ।।५।। जिनरमाणि मिथ्यात्वं, तत्त्वार्थानामरोचनम् ।। इवं सांयिकं जन्तो, गं होतमगृहीतकम् ॥५६॥ तत्र जीवादितत्त्वानां, कथितानां जिनेश्वरः । विनिश्चय पराचीना, दृष्टिः सांशयिकीमता ॥६०॥
अर्थ-जिसने मिथ्यात्व से कलुषित होकर काल किया है अर्थात् मिथ्यात्व में आकर मरण किया है, वह बाहर से संयमी अथवा असंयमी हो किन्तु वह व्यक्ति किसी भी आराधना का आराधक नहीं होता ।।५८।।
भावार्थ-मिथ्यात्व परिणाम हो जाने पर द्रव्य से संयम रहने पर भी किसी एक भी आराधना का वह आराधक इसलिये नहीं है कि सम्यक्त्व के अभाव में ज्ञान चारित्र समीचीनता को प्राप्त नहीं होते हैं ।
____ अर्थ—जिनेन्द्र भगवान ने मिथ्यात्व का स्वरूप इसप्रकार बतलाया है कि तत्त्वार्थों में अरुचि होना मिथ्यात्व परिणाम है, जीव के इस मिथ्यात्व परिणाम के तीन भेद हैं--सायिक मिथ्यात्व, गृहीत मिथ्यात्व और अगृहीत मिथ्यात्व ॥५९।।
__अर्थ-जिनेश्वर द्वारा प्रतिपादित जीवादि तत्वों का निश्चय नहीं होना सांशयिक मिथ्यात्व कहलाता है । अर्थात् जिनेन्द्र कथित तत्त्व सत्य है कि सांख्यादि द्वारा कथित तत्त्व सत्य है इसप्रकार संशय रहना सांशयिक मिथ्यात्व है ।।६०॥