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________________ ५७६ ] मरण कण्डिका कषायसंयगे ध्यानं ममक्षोः कवचो दृढः । ध्यानहीनस्तदा युद्ध निःकंकट भटोपमः ॥१९७७॥ ध्यानं करोत्यवस्टम्भं क्षीणचेष्टस्य योगिनः । बंडः प्रवर्तमामस्य स्थविरस्येच पावनः ॥१९७८।। बलं च्यानं यतेधत्ते मल्लस्येव घृतादिकम् । समोऽपुष्टेन मल्लेन ध्यानहीनो यतिमतः ॥१६७६ । वना रत्नेषु गोशीर्ष पवने च यथा मतम् । ज्ञेयं मरिणष बंपूर्य तथा ध्यानं प्रताविषु ॥१९८०॥ कषायके साथ युद्ध करने में मुमुक्ष मुनिके यह ध्यान दृढ़ कवचके समान है, जो ध्यानसे रहित मुनि है वह कवच रहित योद्धाके समान है । जैसे कवच रहित भट युद्ध में शत्रके बाण, तलवार आदिके प्रहारसे अपनी रक्षा नहीं कर सकता वैसे कषायका नाश करने में उद्यमी क्षपक सुभट यदि ध्यानरूप कवचसे रहित है ध्यान नहीं करता है तो वह कषायशत्रुके शस्त्र प्रहारको रोक नहीं सकता । अर्थात् कषायको जीतने का उत्तम उपाय ध्यान है ।।१९७७।। मन, वचन और दारोरसे जो क्षीण हो चुका है, देव वंदना आदि क्रिया करने में असमर्थ है ऐसे क्षोणकाय योगोके ध्यान सहायताको करता है । अर्थात ओ शरीर द्वारा आवश्यक क्रिया करके चारित्र पालन या कर्मनिर्जरा करने में असमर्थ है वह ध्यान द्वारा उक्त कार्य करता है अतः उसके लिये ध्यान सहाय भूत है। जैसे बूढ़े व्यक्ति के गमनादि क्रिया में दण्डा-लाठी सहायभूत है ।।१६७८।। जैसे मल्ल पुरुषका बल घी आदि है, धी मल्लके शक्तिको करता है बढ़ाता है । वैसे साधु के बलको ध्यान करता है । जो मल्ल घो आदिसे पुष्ट बलवान नहीं हुआ है वह बाहयुद्ध में हार जाता है वैसे जो साधु ध्यानके बलसे होन है वह कर्मशत्रुको नहीं जीत सकता ।।१६७६।। जैसे रत्नों में श्रेष्ठ रत्न हीरा है, चन्दन में श्रेष्ठ चंदन गोशीर्ष है, मणियों में श्रेष्ठ मणि बड्य है वैसे व्रत संयम, तप आदिमें श्रेष्ठ ध्यान है ऐसा जानना चाहिये ।।१९८०।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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