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________________ ५४८ ] मरणकण्डिका को सौंप दिया। पूर्वजन्म में उपाजित पापकर्म के उदय से धनदेव और कमला का आपस में विवाह हो गया। एक बार धनदेव व्यापारके लिए उज्जैनो गया । वहाँ बसंततिलका वेश्यासे उसका सम्बन्ध हो गया। दोनों के सम्बन्ध से वरुण नामका पुत्र हुश्रा । एक बार कमला ने श्री मुनिदत्त से अपने पूर्वभव का वृत्तान्त पूछा । श्री मुनिदत्त ने सब सम्बन्ध बतलाया, जो इस प्रकार है। उज्जैनी में सोमशर्मा नाम का ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम काश्यपी था । उन दोनों के अग्निभूति और सोमभूति नामके दो पुत्र थे । वे दोनों परदेश से विद्याध्ययन करके लौट रहे थे । मार्ग में उन्होंने जिनमति आयिका को अपने पुत्र जिनदत मुनि से कुशलक्षेम पूछते हुए देखा तथा सुभद्रा आयिका को अपने श्वसुर जिनभद्र मुनिसे कुशलक्षेम पूछते हुए देखा । इस पर दोनों भाइयों ने उपहास किया । जवान की स्त्री बूढ़ी और बूढ़े की स्त्री जवान, विधाता ने अच्छा उलट फेर किया है ।' कुछ समय पश्चात् अपने उपार्जित कर्मों के अनुसार सोमशर्मा ब्राह्मण मरकर उज्जैनोमें ही बसन्त लगा की पुत्री वसंततिलका हुई और अग्निभूति तथा सोमभूति दोनों मरकर उसके धनदेव और कमला नाम के पुत्र और पुत्री हए । श्राह्मण की पत्नी व्यभिचारिणी काश्यपो मरकर धनदेव के सम्बन्ध से वसंततिलका के वरुण नाम का पुत्र हुा । इस कथा को सुनकर कमला को जाति स्मरण हो आया । उसने मुनिराज से अणुव्रत ग्रहण किये और उज्जैनी जाकर वसन्ततिलका के घर में घुसकर पालने में पड़े हुए वरुण को झुलाने लगी और उससे कहने लगी (१) मेरे पति के पुत्र होने से तुम मेरे पुत्र हो । (२) मेरे भाई धनदेव के पुत्र होने से तुम मेरे भतीजे हो । (३) तुम्हारी और मेरो माता एक ही है, अत: तुम मेरे भाई हो । (४) धनदेव के छोटे भाई होने से तुम मेरे देवर हो । (५) धमदेव मेरी माता वसंततिलका का पति है, इसलिए धनदेव मेरे पिता हैं। उसके भाई होने से तुम मेरे काका हो । (६) मैं वेश्या वसंततिलका को सौत हूँ अत: धनदेव मेरा पुत्र है । तुम उसके भी पुत्र हो, अतः तुम मेरे पौत्र हो । यह छह नाते बच्चे के साथ हुए। आगे(१) वसंततिलका का पति होने से धनदेव मेरा पिता है । (२) तुम मेरे काका हो और धनदेव तुम्हारा भो पिता है, अतः वह मेरा दादा है। (३) तथा यह मेरा पति भी है । (४) उसको और मेरो माता एक ही है; अतः धनदेव मेरा भाई है। (५) मैं वेश्या वसंततिलका की सौत हूँ और उस वेश्या का वह पुत्र है; अतः मेरा भी पुत्र है । (६) वेश्या मेरी सास है, मैं उसकी पुत्रवधू हूँ और धनदेव वेश्या का पति है; अतः वह मेरा श्वसुर है । ये छह नाते धनदेव के साथ हुए । आगे-(१) मेरे भाई धनदेव
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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