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ध्यानादि अधिकार
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सर्वे सबैः समं प्राप्ताः संबंधाजंतुनांगिभिः । भवति भमतः कस्य तत्र तत्रास्य बांधवाः ॥१८८६।। माता सुता स्नुषा भार्या सुता कांता स्वसा स्नुषा। पिता पुत्रो नृपो वासो जायतेऽनंतशो भवे ॥१८६०॥ वसंततिलका माता भगिनी कमला च ते । एकत्र धनदेवस्य भार्या डासा भये ततः ॥१८६१॥
लोक अनुप्रेक्षाइस जोवने सभी संसारी प्राणियोंके साथ संबंध प्राप्त कर लिया है उस उस मति और योनिमें भमण करते हुए इसके किसके साथ बंधुता नहीं हुई है ? सबके साथ बंधुता हो चुकी है अथवा अन्य गतिमें जानेपर पहलेके बंधुजन कहां रहते हैं ? अतः बंधु मित्र आदिसे मोह ममता करना व्यर्थ है ।।१८८६।। संसारमें जो पहले माता थी वह पुत्री बन जाती है, पुत्रवधू पत्नी हो जाती है पुत्रो, पत्नी और बहिन, पुत्रवधू बन जाती है, जो पहले पिता था वह पुत्र बनता है । जो राजा था वह दास बनता है, ऐसा यह परिवर्तन अनंतबार होता है ॥१५६०।।
देखो ! संसारको विचित्रता! एक ही भव में धनदेव नामके पुरुषके माता वसंततिलका और बहिन कमला ये दोनों पत्नियां हुई थीं ॥१८६१॥
धनदेव (अठारह नाते) की कथामालवदेशकी उज्जनी नगरीमें राजा विश्वसेन, सेठ सूदत्त और वसंततिलका वेश्या रहती थी। सेठ सुदत्त सोलह करोड़ द्रव्यका स्वामी था। उसने घसंततिलका वेश्याको अपने घर में रख लिया। वह गर्भवती हुई और खाज, खाँसी, श्वास आदि रोगोंने उसे घेर लिया। तब सेठने उसे अपने घरसे निकाल दिया । अपने घरमें आकर वसंततिलकाने एक पुत्र और एक पुत्रोको जन्म दिया । खिन्न होकर उसने रत्न कम्बलमें लपेट कर कमला नाम को पुत्री को तो दक्षिण ओर की गलीमें डाल दिया। उसे प्रयाग का व्यापारी सुकेत ले गया और उसने उसे अपनी सुपुत्रा नाम को पत्नी को सौंप दिया तथा धनदेव पुत्र को उसी तरह रस्नकम्बल से लपेटकर उत्तर ओर को गलो में रख दिया । उसे अयोध्यावासो सुभद्र ले गया और उसने उसे अपनी सुव्रता नाम की पत्नी