SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 579
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यानादि अधिकार पंचही कारणा मनंतशः 1 एक द्वित्रिचतुः जातयः सकला वान्ता बेहिना भ्रमता भवे ।। १८६२ ॥ गृह्णीते मुंचमानोऽङ्गी शरीराणि सहस्रशः । भ्रमति द्रव्यसंसारे घटीयंत्रमिवानिशम् ।। १६६३ || बहुसंस्थानरूपाणि चित्रचेष्टाविधायकः P रंगस्थनटवज्जीवो गृहोते मुंचते भवे ॥। १८६४ ॥ [ ५३९ एकेन्द्रिय जाति, द्वीन्द्रिय जाति त्रोन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय इन सर्व ही जातियोंको संसार में भ्रमण करते हुए जीवने अनंतबार प्राप्त किया है ।। १८६२ ।। संसार भ्रमणके पांच भेद हैं द्रव्य परिवर्तन, क्षेत्र परिवर्तन, काल परिवर्तन, भव परिवर्तन और भाव परिवर्तन | आगे पांचोंको क्रमशः वर्णन करते हैं- द्रव्य परिवर्तन यह जीव हजारों शरीरोंको छोड़ता और ग्रहण करता है, जैसे अरहट में लगे हुए सकोरे जलसे भरभर के आते हैं और रिक्त होते जाते हैं वह घटी यंत्र - अरहट सतत घूमता रहता है, वैसे जीव सतत द्रव्यसंसार में भ्रमण करता है ।। १८६६३।। विशेषार्थ – पंच परावर्तन में प्रथम परावर्तन, द्रव्य परावर्तन है उसके दो भेद हैं- नोकर्म द्रव्य परिवर्तन और कर्म द्रव्य परिवर्तन | छह पर्याप्ति और तीन शरीर पुद्गलोंको एक जीवने किसी एक विवक्षित समय में ग्रहण किया और द्वितीयादि समयोंमें उस पुद्गलवर्गणाको निर्जीर्ण किया, आगे के समयोंमें अगृहीत वर्गणाओंको अनंतबार ग्रहण करता है पुनः मिश्र वर्गणाओंको अनंतबार ग्रहण करता है, इसतरह अनंत बारोंको व्यतीत करके पुनः उस विवक्षित वर्गगाको उसी स्पेशादिसे युक्त वही जीव जब ग्रहण करता है, इसमें जितना काल ( अनंत ) लगता है वह नोकर्म परिवर्तन कहलाता है । एक जीवने एक समय में अष्ट प्रकारके ज्ञानावरणादि कर्मोंको ग्रहण किया और समय अधिक आवलीको व्यतीत होनेपर द्वितीयादि समयों में निर्जीर्ण किया, पूनः ग्रहीत आदि कर्मवणाको ग्रहण करता रहा, जब कभी वही जोव उन्हीं वर्गणाओंको
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy