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________________ ५०२ ] मरणकण्डिका रत्यालितचित्तस्य प्रीति स्ति रति विना । प्रीति विना कुतः सौख्यं सर्वदा गृखचेतसः ॥१७३६।। पुदगला विविधोपायः सकला भक्षितारवया । प्रतीतेऽनंतशः काले न च तृप्ति मन:श्रितम् ॥१७४०।। -. विशेषार्थ-भोगभुमिमें भोजनांग पानांग आदि दस प्रकारके कल्प वृक्ष होते हैं इन वृक्षों द्वारा वहांके मानव को दिव्य मिष्ट आहार एवं पेय प्राप्त होते हैं । चक्रवर्ती के भोजनको बनाने वाले तीनसो साठ रसोइया होते हैं वे एक दिन में एक रसोईया इसप्रकार क्रमशः वर्षके तीनसो साठ दिनों में अत्यंत मनोहर आहार बनाते हैं अर्थात् एक दिनमें एक रसोइया भोजन बनाता है, दूसरे दिन में दूसरा, इसप्रकार विशिष्ट भोजनको बनाकर चक्रवर्तीको परोसा जाता है ऐसे भोजनसे भी चक्रवर्ती तृप्त नहीं हो पाता। ऐसे ही अर्धचक्री नारायण प्रतिनारायणके तथा बलदेवके भोज्य पदार्थ महान विशिष्ट हुआ करते हैं उन पदार्थोसे अर्धचक्री आदि भी तृप्त नहीं होते हैं। देवेन्द्र आदि स्वर्गके देवोंका आहार तो मानसिक होता है, आयु प्रमाणके अनुसार कभी कभी मनमें भोजनको इच्छा होती है और तत्काल उनके कंठसे अमृत झरता है उससे देवोंको इच्छा पूर्ण होती है किन्तु हमेशाके लिये ये विशिष्ट व्यक्ति भी तप्त नहीं हो पाते । अत: आचार्य क्षपकको उपदेश देते हैं कि ऐसे दिव्य भोजी व्यक्ति भी आहारसे तृप्त नहीं होते तो किंचित् गोचरी वृत्तिसे प्राप्त आहारसे क्या तृप्ति होगो ? कदापि नहीं । इसलिये आहारकी वांछा करना व्यर्थ है । भोजनमें अत्यंत लंपटता रखनेवाले जीवके "यह पदार्थ बड़ा स्वादिष्ट है, यह नमकीन बहुत अच्छा है" । "इसको पहले लेना चाहिये" इत्यादि रूप भोज्य पदार्थ में आसक्ति रहनेसे आकुलता रहती है और आकुलित चित्तवाले पुरुषको प्रीति नहीं होती, इसतरह रति और प्रीतिके बिना उसको सुख कहांसे होगा ? नहीं हो सकता। भाव यह है कि निराकुलता सुख है और आहार लंपटीके निराकुलता नहीं होती अतः उसको सुख नहीं मिलता है ।।१७३९)! अतीत काल में अनंतबार विविध उपायों द्वारा समस्त पुद्गलोंका तुमने भक्षण किया है । हे मुने ! फिर भी तुम्हारा मन तप्त नहीं हुआ ।।१७४०।। हे सुबुद्ध ! जब अतीत में बहुत सारे भोजनसे तुम्हारी
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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