SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 521
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सारणादि अधिकार कुंभीपाके महातापे क्वथितो यत्समंततः । श्रंगार प्रकरैः पववो यच्छूलप्रीतमांसवत् ॥१६५०।। शाकवद्भृज्यमानो यत् गाल्यमानो रसेन्द्रवत् । चूर्ण बच्चूर्ण्यमानो यहल्लूरमिव कर्तितः ।। १६५१ ।। वारितः क्रकचंश्छिन्नः खड्गैविद्धः शराविभिः । यत्पादितः परश्वास्ताडितो मुद्गरादिभिः ।। १६५२ ।। पार्शर्बद्धोऽभितो भिन्नो द्र घर्णरवशो धनैः । दुर्गमेsभूत यत्क्षिप्तः क्षारकर्दमे ।। १६५३ ।। यवापन्नः परायत्तो नारकैः क्रूरकर्मभिः । लोहशृंगाटके तीक्ष्णे लोटधमानोऽतिगतः ।। १६५४ ।। तष्ट्वा लोकेऽखिलं गात्रं क्षुरप्रेनिशितैश्चिरम् । वोजितः क्षारपानीयैः सिक्त्वा सिषत्वा निरंतरम् ।। १६५५ ।। [ ४८ १ नारकी द्वारा शाकके समान भरता किये गये अर्थात् अमरूद आदिको कोई अविवेकीजन अग्नि समूचा डालकर भूनते हैं भुरता बनाते हैं वैसे तुम समूचे आगमें डालकर भुरता बनाये गये हो । इक्षुके रसको पकाकर जब गुड़ बनाते हैं तब जैसे वह रस अतिशय रूपसे पकता है उसके समान तुम वहां पकाये गये हो अथवा गुड़ को गलाकर चासनी बनाते हैं उस वक्त वह गुड़ जैसे खदबद करके पकता है वैसे तुमको गला-गला के पकाया गया है । चूर्णके समान चूर-चूर किये गये हो तथा मांस खंडके समान कतरे गये हो ।। १६५१।। हे क्षपक ! तुम करोंत द्वारा विदारित किये गये, खड्ग द्वारा छिन्न अवयव किये गये, बाणादिसं विन्द्ध किये गये हो तथा फरसा आदिसे तुम्हारे अवयव उपाड़े गये एवं मुद्गर आदि से पीटे गये थे ।। १६५२ ।। पाश द्वारा चारों ओरसे कसकर बांधे गये, घनके द्वारा तथा कुल्हाड़ो द्वारा टुकड़े किये गये । गहन खारे जलके कीचड़ में नोचा मुख करके पटके गये थे ।। १६५३ ।। क्रूर कर्म करनेवाले नारको जीवों द्वारा जब तुम पकड़े गये थे तब लोहमयी तीक्ष्ण कांटोंपर अति वेगसे लौटाया गया था ।। १६५४ ।। नरक लोकमें नारकीयोंने पैने खुरपे से तुम्हारा सारा शरीर चिरकाल तक छीला था तथा निरंतर खारे जलसे सींच
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy