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मरणकण्डिका असुरवंतरण्यां च प्रापितो निणाशयः । कदंबवालुकायुजं गाढमाना यवा सृतः (?) ॥१६४५।। तप्तायःप्रतिमाकोणे यत्प्राप्तो लोहमंडपे । प्रायसं पाय्यमानोऽपि प्रतप्तं कललं कटु ॥१६४६॥ दुःस्पश्यं खाद्यमानो पल्लोहमंगारसंचयम् । पच्यमानः कंदकासु मंडका इव रंधितः ।।१६४७॥ चूर्णितः कुट्टितश्छिन्नो यन्मुग्दरमुसंडिभिः । बहुशः खडितो लोकर्यच्चभ्रस्थैरितस्ततः ॥१६४८।। उत्पाट्य बहुशो नेत्रे जिह्वा संछिद्यमूलतः। यन्नीतो नारफैबु:खं दुःखदानविशारदः ॥१६४६॥
॥१६४४।। निर्दयी असुर कुमारों द्वारा वैतरणी नदीमें डुबाये गये। कदंब पुष्पके आकारके बालुके पुजपर जबरन सुलाया गया उस समय का दुःख याद करो ॥१६४५।। लोहमयी मंडपमें तपायी हुई लोहे की प्रतिमा जहाँ है वहाँ तुम्हें चिपकाया गया एवं तपाया हुअा कल कल करता हुआ कटुक लोह रस तुम्हें जबरन पिलाया गया था, हे क्षपक ! उसका स्मरण करो ||१६४६।।
नरक में लोहेके गोलोंको तपाकर दु:स्पर्श, ऐसे अंगारेके समान लाल लाल हुए को तुमको नारकी द्वारा खिलाया गया था तथा कढाईमें मंडकोंके समान पकाया गया था। उस दुःखको हे क्षपक ! याद करो ।।१६४७।।
___ नरकमें नारकी जोवोंके द्वारा इधर उधरसे आ आकर बहुत बार तुम्हारे शरीरके खंड खंड किये गये तथा मुद्गर, मुसंडो प्रादिके द्वारा छिन्न किये गये कुटे गये और चूर्ण चूर्ण किये गये थे ।। १६४८।।
नरको नारकी द्वारा तुम्हारे दोनों नेत्र बहुत बार उखाड़े गये, जिह्वाको मलसे काटा गया, दुःख देने में निपुण ऐसे नारकी जीवों द्वारा जो तुमको दुःख दिया गया था उसको स्मरण करो ॥१६४६।। हे क्षपक मुने ! तुमको महासंतापकारी भी पाकमें चारों ओर से पकाया गया था। शूल में लगे मांसके समान अंगारों के समूहके मध्यमें तुम पकाये गये थे उस घोर दुःखको याद करो ।।१६५०।। हे मुने ! तुम नरक में