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________________ सारणादि अधिकार [ ४७५ , यमुनावकनिक्षिप्तः शरपूरितविग्रहः । अध्यात्य वेवनां चंडः स्वार्थ शिश्राय धीरधीः ॥१६३२॥ चिलातपुत्र ने विवाह स्नान करती हुई सुभद्राका हरण कर लिया जब यह बात श्रेणिक ने सुनी तब वह सेना लेकर उनके पीछे दौड़ा श्रेणिकसे अपनी रक्षा न होते देख चिलात ने उस कन्या को निर्दयता पूर्वक मार डाला और आप अपनी जान बचाकर वैभार पर्वत परसे भागा जा रहा था कि उसे वहां मुनियों का एक संघ दिखाई दिया और उसने उनसे दोक्षाकी याचना की । तेरी आयु अब मात्र आठ दिन की रही है ऐसा कहकर आचार्य ने उसे दीक्षा दे दी। दीक्षा लेकर चिलात मनिराज प्रायोपगमन सन्यास लेकर आत्मध्यानमें लीन हो गये । सेना सहित पीछा करने वाले श्रेणिक ने जब उन्हें इस अवस्थामें देखा तब वे बहुत आश्चर्यान्वित हुए और मुनिराजको भक्तिपूर्वक नमस्कार करके राजगह लौट आए। चिलातपुत्रने जिस कन्या को मारा था वह मरकर व्यंतर देवी हुई और "इसने मुझे निर्दयता पूर्वक मारा था" इस वैरका बदला लेने हेतु वह चोल का रूप ले चिलात मुनिके सिर पर बैठ गई। उसने उनको दोनों आंखें निकाल ली और सारे शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया जिससे उनके घावों में बड़े-बड़े कीड़े पड़ गये इसप्रकार आठ दिन तक वह देवी उन्हें अनिर्वचनीय वेदना पहुँचाती रही, किन्तु मन, इन्द्रियों और कषायों को वशमें करने वाले मुनिराज अपने ध्यानसे किंचित् भी विचलित नहीं हुए तथा समाधिपूर्वक शरोर छोड़कर सर्वार्थ सिद्धि की प्राप्ति की। कथा समाप्त । यमुनावक्र नामके दुष्ट पुरुष द्वारा छोड़े गये बाणोंसे घायल हुआ है शरीर जिनका ऐसे चंड (दंड-धन्य) नामके मुनिने धोर बुद्धि होकर उस घोर वेदनाको सहन कर रत्नत्रयको प्राप्त किया था ।।१६३२।। (धन्य) चंड या दंड नामके मुनिकी कथा-- पूर्व विदेहक्षेत्रको प्रसिद्ध राजधानो बीतशोकपुर का राजा अशोक अत्यन्त लोभी था । वह धान्यका दाय करते समय बैलों के मुख बंधवा दिया करता था जिससे वे अनाज न खा सकें और रसोइ गृह में रसोई करने वाली स्त्रियों के स्तन बंधवा देता था ताकि उनके बच्चे दूध न पी पावें । एक समय राजा अशोक के मुख में कोई भयंकर
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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