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सारणादि अधिकार
वास्तव्यो हास्तिने धीरो द्रोणीमतिमहीधरे ।
गुरुदत्तो यतिः स्वार्थं जग्राहानलबेष्टितः ॥ १६३०॥
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हस्तिनापुर के मुनि गुरुदत्त द्रोणीमति पर्वत पर ध्यान करते थे उनको किसो दुष्ट ने वेष्टित कर जला दिया था उस घोर वेदनामें भी उन्होंने रत्नत्रय रूप स्वार्थको ग्रहण किया था - मोक्षको प्राप्त किया था ।। १६३०||
गुरुदत्त मुनिकी कथा
हस्तिनापुर में गुरुदत्त नामके राजा राज्य करते थे । उसी समय द्रोणीमति पर्वतके समीप चन्द्रपुरी नगरीमें राजा चन्द्रकीर्ति था, उसकी अभयमती नामकी अनिद्यसुदरी कन्या हुई । गुरुदत्तने उस कन्या की मांग को किन्तु चन्द्रकीतिने मना किया उससे कुपित होकर गुरुदत्तने उसपर चढ़ाई कर दी। अभयमती को जब यह वृत्तांत ज्ञात हुआ तब उसने पिता से प्रार्थना की कि मेरा इस जन्ममें गुरुदत्त ही पति हो ऐसा मेरा प्रण है अतः आप उसीसे विवाह कर दीजिये । पुत्रो की बात पिता को माननो पड़ी | मंगल वेला में विवाह सम्पन्न हुआ । गुरुदत्त राजा अभयमली के साथ श्रानंदसे रहने लगा । द्रोणीमति पर्वत में रहने वाला एक सिंह जनता को बहुत कष्ट दे रहा है ऐसा सुनकर गुरुदत्त राजा वहां आया और सिंहकी गुफा में चारों ओर आग लगाकर सिंहको जला दिया। सिंह प्रकाम निर्जरा करके उसी चन्द्रपुरी में ब्राह्मण का पुत्र हुआ ।
गुरुदत्त नरेश कुछ समय तक राज्य करके दोक्षित होते हैं और क्रमशः विहार करते हुए उसी द्रोणोमति पर्वतके निकट उसो कपिल ब्राह्मण के खेत में ध्यानस्थ होते हैं । उस समय कपिल अपनी पत्नी को खेल पर भोजन लानेके लिये कहकर खेत पर आया वहां मुनि को देखकर उस खेत को जोतना उचित नहीं समझा अत: दूसरे खेत में जाने का सोचा । उसने मुनिराज से कहा- मैं दूसरे खेत पर जा रहा हूँ। मेरी पत्नी भोजन लेकर आयेगी उसको कह देना । मुनि ध्यानस्थ थे उन्होंने कपिल पत्नी को पूछने पर भी कुछ उत्तर नहीं दिया । ब्राह्मणो घर चलो गयी । कपिल को समय पर भोजन नहीं मिला अतः घरमें आनेपर पत्नी को पीटना प्रारंभ किया, ब्राह्मणो ने घबराकर कहा कि मैं तो खेतपर गयो थी किन्तु आप नहीं मिले, वहां एक महात्मा बैठे थे उन्हें भी पूछा किन्तु कुछ उत्तर नहीं मिलने से वापिस आयी हूँ । इतना सुनते ही कपिलका क्रोध और अधिक बढ़ गया । उसने तत्काल खेत में जाकर सेमर नाम की रूई से मुनिराज