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________________ सारणादि अधिकार [ ४७१ प्रपेदे मशकैशः खाद्यमानो महामनाः । विधुरिमुष. स्वार्थ साधुःसहवेदनः ॥१६२६।। अभयघोष मुनिकी कथाकाकन्दीपुरमें राजा अभयघोष राज्य करते थे । उनको रानीका नाम अभयमती था। इन दोनों में अत्यन्त प्रीति थी । एक दिन राजा अभयघोष घूमने जा रहे थे । रास्ते में उन्हें एक मल्लाह मिला जो जीवित कछुए के चारों पैर बांधकर लकड़ी में लटकाये हुए जा रहा था । राजा ने अज्ञानता बश तलवार से उसके चारों पैर काट दिये । कछुआ तड़फड़ा कर मर गया और अकाम निर्जरा के फल से उसी राजा के चण्डवेग नाम का पुत्र हुआ । एक दिन चन्द्रग्रहण देखकर राजा को वैराग्य हो गया, उसने पत्र को राज्यभार सौंपकर दीक्षा धारण करली । वे कई वर्षों तक गुरु के समोप रहे। इसके बाद संसार समुद्र से पार करने वाले और जन्म, जरा तथा मृत्यु को नष्ट करने वाले अपने गुरु महाराज से आज्ञा लेकर और उन्हें नमस्कार करके धर्मोपदेशार्थ अकेले ही विहार कर गये। कितने हो वर्षों बाद चूमते घूमते काकन्दीपुर आये और बीरासनमें स्थित होकर तपस्या करने लगे। इसी समय जो कछुवा मरकर उनका पुत्र चण्डवेग हुआ था वह वहां से आ निकला और पूर्वभव (कछुआ को पर्याय ) को कषायके संस्कार वश तोव क्रोधसे अन्ध होते हुए उस चण्डवेग ने उनके हाथ पैर काट दिये और तीव्र कष्ट दिया । इस भयंकर उपसर्ग के आजाने पर भी अभयघोष मुनिराज मेरु सदृश निश्चल रहे और शुक्लध्यानके बलसे अक्षयानन्त मोक्ष लाभ किया। कथा समाप्त । विद्य तचर (चोर) नामके मुनि दंशमशकों द्वारा खाये जानेपर भी अपने स्वार्थ मोक्षको प्राप्त हुए, कैसे थे वे मुनिराज ? उदार है मन जिनका तथा घोर वेदना को सहनेवाले थे ।।१६२६॥ ___विद्य च्चर मुनिको कथामिथिलापुर के राजा वामरथ के राज्य में यमदण्ड नामका कोतवाल और विधु च्चर नामका चोर था । विद्य च्चर चोरियां बहुत करता था पर अपनो चालाकोके
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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