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________________ मरणकण्डिका अवमोदर्यमंत्रेण भद्रबाहमहामनाः । बुभुक्षाराक्षसों जित्वा स्त्रीचकारार्थमुत्तमम् ।।१६२३।। मासोपवाससंपन्नश्चंपायां तडज्वरादितः । धर्मघोषो मुनिः प्राप्तः स्वार्थ गंगानदीतटे ॥१६२४॥ पणिक-एणिक पुत्र मुनिको कथापणीश्वर नामक नगरमें राजा प्रजापाल राज्य करते थे । वहाँ एक सागरदत्त सेठ अपनी पणिका नामको स्त्रीके साथ आनन्दसे रह रहा था। उन दोनोंके एक पणिक नाम का पुत्र था, जो सरल, शान्त और पवित्र हृदय का था । एक दिन पणिक भगवान के समवसरणमें गया । वहाँ उसने गंध कुटीमें स्थित बर्द्धमान स्वामी का दिव्य स्वरूप देखा, जिससे उसके रोम-रोम पुलकित हो उठे । भगवान की स्तुति और पूजन आदि कर चुकने के बाद पणिकने धर्मोपदेश सुना और अपनी आयुके विषय में प्रशन भी किया तथा अल्प आयु जानकर वह वहीं दीक्षित हो गया । दीक्षा लेकर पणिक मुनिराज अनेक देशोंमें बिहार करते हुए गंगापार करने के लिए एक नाबमें बैठे । मल्लाह सुचारुरीत्या नाव खे रहा था कि अचानक भयंकर आँधी आई, नाव डममगाने लगी, उसमें पानी भर गया, फलस्वरूप नाव डूबने ही वाली थी कि पणिक मुनिराज विशेष आत्मविशुद्धि के साथ शुक्लध्यान में लीन हो गये और केवलज्ञान की प्राप्तिके साथ ही मोक्ष प्राप्त कर लिया। कथा समाप्त । भद्रबाहु नामके महामुनिने अवमौदर्य तप रूप मंत्र द्वारा क्षुधा रूपी राक्षसो को जीतकर उत्तम रत्नत्रय अर्थको प्राप्त किया था ।। १६२३।। चंपानगरी में गंगा नदीके तटपर एक मासके उपवासका नियम लेकर धर्मघोष मुनि स्थित थे, तब उन्हें भयंकर तृषा-प्यासको पीड़ा हुई किन्तु उसे सहन करते हुए उन्होंने आराधना द्वारा मोक्षको प्राप्त किया ।।१६२४।। धर्मघोष मुनिको कथा.. धर्ममूर्ति परम तपस्वी धर्मघोष मुनिराज एक माहके उपवास करके चम्पापुरी नगरमें पारणाके अर्थ गये थे। पारणा करके तपोवन को ओर लौटते हुए रास्ता भूल
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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