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मरणकण्डिका घरण्यामा चमेव किल कोलितविग्रहः । प्रापद्गजकुमारोऽपि स्वार्थ निर्मलमानसः ।।१६२०॥ कासशोषारुचिश्छविकच्छूप्रभृतिवेवनाः । सोढाः सनत्कुमारेण यतिना शरदा शतम् ॥१६२१।।
निर्मल मानसवाले गजकुमार मुनिने पृथ्वीमें गीले चमड़े के समान कीलें ठोककर जिनका शरीर कीलित कर दिया है ऐसा होते हुए भो निर्वाण को प्राप्त किया था।॥१६२०॥
गजकुमार मुनि की कथाश्रीकृष्ण नारायण के सुपुत्र गजकुमार अलि सक्रमार थे । वे अपने पिता आदि के साथ घर्मोपदेश सुनने के लिए भगवान् नेमिनाथके समोशरण में जा रहे थे । मार्ग में एक ब्राह्मण को नव-यौवना, सर्वगुणसम्पन्ना, सुलक्षणा और सौन्दर्यमूर्ति पुत्रोको देखकर श्रीकृष्ण ने उसे उसके पितासे गजकुमारके लिए मंगनी कर ली और उसे अन्त:पुर में भिजवा दिया । भाडान का उपदेश मुलकर श्रीकृष्ण तो सपरिवार द्वारका लौट आये परन्तु गजकुमार नहीं लौटे और जैनेश्वरी दीक्षा धारण करके किसी एकान्त स्थानमें ध्यानारूढ़ हो गये । जिस लड़की का संबंध गजकूमार से हुआ था उसका पिता जंगलसे काष्ठ भार को लेकर लौट रहा था, उसकी दृष्टि जैसे ही गजकुमार पर पड़ो, वह प्राग बबूला हो उठा और बोला-"अरे दुष्ट ! मेरो अत्यन्त प्रिय सूकुमारी पुत्रीको विधवा बनाकर तू साधु बन गया है, मैं देखता हूँ तेरी साधुता को।" ऐसा कहकर उस दुष्टने मुनिराजके शरीर में काल ठोक दी ।
गोले चमड़े में जैसे कोलें ठोकते हैं। उस घोर वेदनाको सहन कर गजकुमार महामुनि अंतकृत केवलो हुए।
कथा समाप्त । सनत्कुमार चक्रवर्ती मुनिने कास, शोष, अरुचि, वमन, खुजली आदि अनेक रोगोंको बेदनाओंको सैकड़ों वर्ष पर्यंत सहन किया था ।।१६२१॥
__सनत्कुमार मुनि की कथा-- भारतवर्षके अन्तर्गत वीतशोक नगरमें राजा अनन्त वीर्य रानो सीताके साथ कालयापन करते थे। उनके सनत्कुमार नामका अत्यन्त रूपवान् पुत्र उत्पन्न हुआ जो