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सारणादि अधिकार
लिहां शुगते पुणे कुणः क्षाकस्ताः । वते निर्यापकः शिक्षामनिविष्णः प्रियंववः ॥१५६८॥ कतिक्तकषायाम्ललबरणस्वावुभौरसः । पानकं मध्यमयुक्तं तस्मै क्षीणाय दीयते ॥१५६६।। यबासौ नितरां क्षीणस्तदपि त्याज्यते तदा । पटीयांसो न कुर्वन्ति निरर्थक नियोजनम् ॥१५७०।।
__ हित एवं प्रियवचन बोलने वाले निर्यापक बिना विश्रामके क्षपकको शिक्षा देता है उससे यथोक्त तपको करता हुआ क्षपक बड़ी भारी कर्मोको निर्जरा करता है ॥१५६८॥
समाधिमरणमें उद्यमी क्षीणकाय क्षपके लिए कटुक, तीखा, कषायला, नमकीन, स्वादु, मोठा इन रसोंमेंसे मध्यम रसोंका पानक देना उपयुक्त होता है ।।१५६६॥
पुनः अतिक्षीणकाय होनेपर क्षपक द्वारा वह पानक भी निर्यापक द्वारा छुड़ाया जाता है। ठीक ही है चतुर पुरुष व्यर्थका नियंत्रण नहीं करते हैं अर्थात् निर्यापक क्षपकको क्षमताके अनुसार पानकका त्याग कराते हैं ।।१५७०।।