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अनुशिष्टि महाधिकार कषायाक्षद्विषो बद्धा भावनाभिस्तपस्विना । शंखलाभिरिव स्तेना न दोषं जातु कुर्वते ॥१४८०।। कषायाक्षमहाध्यानाः संयमप्राण भक्षिणः।। अधिरोप्य नियम्यन्ते वैराग्यहढपञ्जरे ॥१४८१॥ नोता तमहावारि कषायाक्षमतंगजाः । यशा संत्यवशाः सन्तो बद्धा विनयरश्मिभिः ॥१४८२॥ कषायाक्षगजाः शोलपरिखालंघनषिणः । धर्तव्याः सहसा वोरंधू तिकर्णप्रतोदनः ॥१४८३।। कषायाक्षद्विपा मत्ता दुःशीलबनकाक्षिणः । ज्ञानांकुविधीयन्ते तरसा वशवर्तिनः ।।१४८४।।
इन तपस्वी जनोंने कषायरूपी वैरियोंको अहिंसादि व्रतोंकी पच्चीस भावना रूपी साकलोंसे बांध रखा है अब वे कभी भी दोष-संयमका अपहरण आदिको नहीं कर सकते, जिसप्रकार कि चोर दृढ सांकल द्वारा बांधे जानेपर दोषको-चोरीको नहीं कर सकते ।।१४८०॥
संयम रूपी प्राणोंका भक्षण करने वाले कषाय और इन्द्रियरूपो महाभयंकर शेर चोते वैराग्यरूपी मजबूत पीजरेमें बंद करके नियंत्रित किये जाते हैं ।।१४८१।।
जो किसीके वशमें नहीं आते हैं ऐसे अवश कषाय और इन्द्रिय रूपो हाथी व्रतरूपी बंधन स्थान में ले जाकर विनयरूपी रस्सी से बांध दिये जानेपर वश में आजाते हैं ॥१४८२।।
ये कषाय और इन्द्रियरूपी गज शोलरूपो खाईका उल्लंघन करना चाहते हैं उन्हें अकस्मात् जाकर धैर्यरूपी कर्ण प्रहारोंसे बीर पुरुषोंको पकड़ लेना चाहिये ॥१४८३।। कषाय और इन्द्रिय रूपी मत्त हाथी खोटे आचरण रूपो वन में प्रवेश करना चाहते हैं, ऐसे मत्त हाथियोंको शीघ्र ही ज्ञानरूपी अंकुश द्वारा वशमें किया जाता है ११४८४।। जो ध्यानरूपी योद्धाके द्वारा वश किये जा सकते हैं, रागद्वेष रूपी मदजल से जो आकुलित हैं ऐसे गज यदि ज्ञानरूपी अंकुश नहीं हो तो विषयरूपी वनमें चले जाते हैं ॥१४८५॥