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________________ ४२८ । मरणकण्डिका - हृषीकमार्गणास्तीक्ष्णा साधुभिषति खेटकः । ध्यानसायकमादाय खण्डयन्ते ज्ञानदृष्टिभिः ॥१४७४॥ प्रमादवपनाः साधु चरंतं संगकानने । धृत्युपानद्विनिमुक्त विध्यन्तीन्द्रियकण्टकाः ॥१४७५।। प्राबद्धधत्युपानकमुपयोगविलोचनम् । कषायकण्टका: साधून विध्यन्ति मनागपि ॥१४७६।। कषायमर्कटा लोलाः परिग्रहफलैषिणः । लपन्ति संयमारामं योगिनो निग्रहं विना ॥१४७७॥ त्रिकाल दोषदा नित्यं चंचला मुनिपुंगवः । कषायमर्कटा गावं बध्यन्ते वृत्तरअभिः ॥१४७८॥ महोपशमसत्वाळयानास्त्रैर्धतिमतः । साधुयोधधिजोयन्ते कषायेन्द्रियविद्विषः ॥१४७६।। . . .----... -- -- -- - -- - ज्ञानरूपी नेत्र जिनके पास हैं एवं धैयरूप तलवारके धारक साधुनों के द्वारा ध्यानरूपी बाण लेकर वे इन्द्रिय रूपी तीक्ष्ण बाण खंडित-नष्ट किये जाते हैं ।।१४७४।। परिग्रहरूपी वन में धर्यरूपी जतेसे रहित विचरण करने वाले साधुको प्रमाद ही है मुख-नोक जिनकी ऐसे इन्द्रिय रूपी कांटे वेध देते हैं-लग जाते हैं ॥१४७५॥ किन्तु जिसने धैर्यरूपी पादत्राण पहन रखे हैं और ज्ञानोपयोग रूपो नेत्रोंसे जो संयुक्त है उन साधु को कषायरूपी कांटे जरा भी नहीं लगते हैं नहीं चुभते हैं ।।१४७६।। परिग्रह रूपो फलोंको जो चाहते हैं ऐसे कषाय रूपी चपल बंदरको यदि निगहीत नहीं किया जाय तो वे अवश्य हो साधुओंके संयमरूपी उद्यान को नष्ट भ्रष्ट कर डालते हैं-उजाड़ देते हैं ।।१४७७।। तीनोंकालों में दोषको करनेवाले कषायरूपी चंचल बंदर मुनिजनों द्वारा चारित्र रूपी रस्सीसे कसकर बांध दिये जाते हैं ।।१४७८।। महान उपशम भावरूपी शक्ति जिनके पास है ज्ञानरूपी शस्त्रोंसे जो सुसज्जित हैं जिन्होंने धैर्यरूपी कवच पहन रखा है ऐसे साधुरूपी योद्धाओं द्वारा करायरूपी शत्रु जोते जाते हैं ।।१४७६।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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