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________________ ४२६ ] मरर कण्डिका छंद-उपजाति लोभेन लोभः परिवर्धमानोदिवानिशं वह्निरिवेन्धनेन । निषेव्यमाणो मलिनत्वकारी न कस्य तापं कुरुते महान्तं ।। १४६७ ।। इति लोभः । इति कषायविशेषदोषाः ॥ शत्रुसर्पानलब्याघ्राः नवाधिपन्न कुर्व यं करोति महादोषं कषायारिः शरीरिणाम् ॥। १४६८ ।। इस निर्जन वन में कहाँसे आया ? रेणुका ने कहा कि हमारे पास कामधेनु है उसके द्वारा सब कुछ मिलता है, राजाको कामधेनुका लोभ सताने लगा उसने उसकी याचना की किन्तु जमदग्नि ने मना किया तब उस लोभी अन्यायी राजाने हठात् कामधेनुका हरण कर लिया और जमदग्निको मारकर अपने नगर में लौट आया। इधर श्वेतराम महेन्द्रराम बनसे ईंधन को लेकर कुटी में पहुंचे और पिताको मरा देखकर बहुत दुःखी होगये । दोनों पुत्र अत्यंत पराक्रमी थे । उन्हें देवोपनोत शस्त्र परशु भी प्राप्त था । उन्होंने कार्त्तवीर्यको सेना सहित नष्ट कर दिया, सर्व वंश का सर्वथा नाश कर डाला और दोनों भाई उस राज्य के स्वामी बन गये । इसप्रकार लोभ के कारण कार्त्तवीर्य नरेश मारा गया और मरकर नरकमें चला गया । कथा समाप्त । जिसप्रकार इन्धन से अग्नि बढ़तो है उसप्रकार लोभसे लोभ रात-दिन बढ़ता जाता है, लोभका सेवन करने से मलिनता कृपणता आदि कलंक दोष आते हैं । इसतरह यह लोभ किसके महा संताप को नहीं करता ? सबको ही संताप करता है || १४६७ । । लोभ दोष का कथन समाप्त हुआ । इसप्रकार चारों कषायोंके दोष विशेष रूपये कहे । संसारी जीवोंके कषायरूपी शत्रु जिस महादोषको करते हैं उस महादोष को यह मनुष्य रूप शत्रु नहीं कर सकता, सर्प, अग्नि तथा व्याघ्र भी उस महादोषको कभी नहीं करते जिसको कि कषाय रूपी शत्रु करते हैं || १४६८ ।। जो वैराग्यरूपी लगामसे रहित हैं ऐसे कषाय और इन्द्रिय रूपी दुष्ट घोड़े बलवान् पुरुष को भी दोषरूपी दुर्गम
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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