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अनुशिष्ट महाधिकार
मार्दवं कुर्वतो जन्तोः कश्चनार्थो न हीयते ।
संपद्यते परं सद्यः कल्याणानां परंपरा ।। १४५१ ।। छंद-उपजाति
मानेन सद्यः सगरस्य पुत्रा महाबलाः षष्टिसहस्र संख्या: । रहेन भिन्नाः कुलिशेन तुंगा घरावरेंद्रा इव भूरिसत्वाः ।। १४५२ ।।
॥ इतिमान दोषः ॥
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मान रहित पुरुष आदरको प्राप्त करता है वह दुःखकारी गर्वको सदा दूर करता है, गर्वका अपने में प्रवेश नहीं होने देता, वह निर्मल कीर्तिको सिद्धि कर लेता है और अंत में मोक्ष लक्ष्मीका स्थान बन जाता है अर्थात् मोक्षको प्राप्त करता है ।। १४५० ।।
मानका अभाव होकर जो स्वाभाविक मार्दव भाव जोवमें प्रगट होता है, उस मार्दव धर्मका पालन करनेवाले जीवके कुछ नुकसान नहीं होता है उलटे मार्दव धर्म द्वारा तो अभ्युदय श्रादि कल्याणोंकी परंपरा तत्काल प्राप्त होतो है ।। १४५१ ।।
सगर चक्रवर्तीके साठ हजार संख्या प्रमाण महाबलशाली पुत्र मान द्वारा तत्काल नष्ट हो गये थे जैसेकि ऊँचे बहुत सत्त्व- मजबूती वाले पर्वतराज दृढ़ वज्र द्वारा चूर-चूर हो जाते हैं; वैसे वे चक्री पुत्र मानरूपी वसे मृत्युको प्राप्त हुए थे ।। १४५२।। सगरचक्रोके साठ हजार पुत्रोंको कथा -
इस अवसर्पिणी कालके बारह चक्रवर्ती मे से सगर दूसरे चक्री हुए उनके साठ हजार पुत्र थे । वे सभी बल वीर्य पराक्रमके धारक थे, उन सबने मिलकर एक दिन पितामे कहा कि हम सबको कोई राज्य आदि संबंधी कार्य बताईये | पिताने कहा पुत्रों ! यहा कार्य करने की क्या आवश्यकता ! सुखपूर्वक रहो। किन्तु पुत्रोंके अधिक आग्रह होनेसे चक्रीने कहा- कैलाश पर्वतके चारों ओर खाई खोदकर उसमें गंगाजल भरदो । सब पुत्र प्रसन्न हुए उन्हें अपने बल पराक्रमका बड़ा ही अभिमान था । दण्ड रत्नको लेकर खाई खोदने कैलाश पर्वतकी ओर चल पड़े ।
सगर चक्रवर्तीका पूर्व जन्मका एक मित्र देव हुआ था वह सगरको जिनदीक्षा दिलाना चाहता था इस विषय में उसने पहले प्रयत्न भी किये थे किन्तु वे प्रयत्न सफल नहीं हुए थे । अतः दण्ड रत्नसे धरणीको खोदते हुए उन चक्री के पुत्रोंको देखकर चक्रीको वैराग्य उत्पन्न कराने हेतु उस देवने अपनी मायासे सब पुत्रोंको बेहोश कर दिया