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अनुशिष्टि महाधिकार द्वीपायनेन निःशेषा दग्धा द्वारावती रुषा । पापं च दारुणं वग्धं तेन दुर्गतिभीतिदम् ।।१४४५॥
॥इति कोपः॥ जातिल्पकुलेश्वर्यविज्ञानाज्ञातपोबलः । कुर्वाणोऽहंकृति नीचं गोत्रं बध्नाति मानवः ॥१४४६।।
व्यवहार करते हैं और उसका धन भी चोरी में चला जाता है । इसतरह क्रोधसे अनेक भवों में दुःख भोगने पड़ते हैं ।
द्वीपायन मुनिने क्रोध में आकर संपूर्ण द्वारावती नगरीको जला डाला था वह दारुण पाप करके स्वयं जला और उस पापसे भयंकर दुर्गतिमें गया ।।१४४५।।
द्वीपायन मुनिको कथासोरठ देश में प्रसिद्ध द्वारिका नगरी थी। इसमें बलदेव और कृष्ण नारायण राज्य करते थे। किसी दिन दोनों बलभद्र नारायण भगवान् नेमिनाथके दर्शनके लिये समवसरणमें गये । धर्मोपदेश सुननेके अनंतर बलभद्रने प्रश्न किया कि यह द्वारिका कबतक समृद्धशाली रहेगी । दिव्य ध्वनिमें उत्तर मिला कि बारह वर्ष बाद शराबके कारण द्वीपायन द्वारा द्वारिका भस्म होगो एवं जरत्कुमार द्वारा श्री कृष्णकी मृत्यु होगी। इस भावी दुर्घटनाको सुनकर सभोको दुःख हुआ। बहुतसे दीक्षित हुए । द्वौपायनमे भी मुनिदोक्षा ग्रहणकर दूर देशमें जाकर तपस्या की । द्वारिकाको सब शराब वन में डालो गयो । बारह वर्ष में कुछ दिन शेष थे । द्वोपायन मुनि नगरके निकट आकर ध्यान करने लगे । बहुत से यदुवंशी राजकुमार वन क्रीड़ाके हेतु गये थे, वहां तृषासे पीड़ित होकर शराब मिश्रित पानीको उन्होंने पी लिया और उन्मत्त हो गये, पासमें द्वीपायन मुनिको देखकर वे कुमार उनको पत्थरोंसे मारने लगे । मुनिको क्रोध आया और उनके कंधेसे तैजस पुतला निकल गया, उस तेजस पुतलेसे समस्त द्वारिका भस्म हो गयी। द्वीपायन भो भस्म हुए और कुगतिमें चले गये ।
कथा समाप्त । मान कषायके दोष
जाति, रूप, कुल, ऐश्वर्य, विज्ञान, आज्ञा, तप और बलके द्वारा अहंकार करने वाला मानव नीच गोत्रका बंध करता है ।।१४४६।।