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मरणकण्डिका
गोपासक्ता सुतं हत्वा नासिक्यनगरे मृता । पापा गृहपतेर्भार्या
दुहित्रा मारिता सती ।। १४२७ ॥ छंद - रथोद्धता
दु:खदाननिपुणा निषेविताः स्पर्शरूपरसगंधनिस्वनाः ।
दुर्जना इव विमोह्य मानवं योजयंति कुपथे प्रथीयसि ।। १४२८ ॥
नासिक्य नगर में एक सेठको पापी पत्नी ग्वालेमें आसक्त थी उसने अपने पाप को छिपाने के लिये पुत्रको मारा, इस कृत्य से कुपित हुई खुदको पुत्री द्वारा स्वयं भो मारी गयी ।। १४२७ ॥
गोपमें आसक्त नागदत्ताकी कथा --
नासिक्य नगर में सागरदत्त सेठकी सेठानी नागदत्ता थी उसके दो संतानें थीं, श्रीकुमार और श्रीषेणा । सेठानी अपनो गायें चरानेवाले नंद नामके ग्वालेपर आसक्त यी । उसने तो परदा डाला पुनः पुत्रको मारनेमें भी उद्यत हुई । पुत्र पहलेसे अपनी माताके कुकृत्य से अत्यंत दुःखी था । उसने माताको बहुत कुछ समझाया भी किन्तु उस पापिनीने उल्टे उसे मारनेका निश्चय और भी दृढ़ किया। किसी दिन वह अपने यार नंदको कह रही थी कि तुम श्रीकुमार पुत्रको मार डालो। इस रहस्यको पुत्री श्रीषेणाने सुना और भाईको सावधान किया। गाय चरानेको एक दिन माताने ग्वालेको न भेजकर पुत्रको भेजा पुत्र समझ गया कि आज धोखा है । वह जंगलमें जाकर अपने वस्त्र एक लकड़ीके ठूंठको पहनाता है और स्वयं छिप जाता है । पीछेसे ग्वाला आकर ठूठ को कुमार समझकर भाला मारता है कि इतने में कुमार उसी भासे नंद ग्वालेको मौत के घाट उतार देता है। घर में आनेपर नागदत्ता पूछती है कि नंद कहाँ है ? पुत्र उत्तर देता है इस बातको तो यह भाला जानता है । नागदत्ता समझ जाती हैं कि अपने यारकी मृत्यु हो चुकी है। क्रोधमें आ वह पापिनो मूसलसे श्रीकुमारका मस्तक फोड़ देतो है । पुत्री श्रीषेणा इतने में आकर उसी मूसलसे नागदत्ता माताको मार देती है इसप्रकार वह पावती परपुरुष आसक्त नागदत्ता स्पर्शनेन्द्रियके विषय में आसक्त होकर सर्व कुटु बका नाशकर नरकगामिनी हुई।
कथा समाप्त ।
जिसप्रकार दुर्जनों की संगति करनेवालेको दुर्जन लोग मोहित करके बड़े भारी खोटे मार्ग- व्यसन आदि में फंसा देते हैं, उसप्रकार दुःख देनेमें निपुण ऐसे सेवन किये