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अनुशिष्टि महाधिकार सुवेगस्तस्करी दोनो रामारूपविषक्तयोः । बाणविद्ध क्षरणो मृत्वा प्रपेवे नारकों पुरीम् ॥१४२६॥
सुवेग नामका चोर स्त्रियोंके मनोहर रूप देखने में आसक्त होकर बाणोंसे विद्ध होकर मर गया और नारक पुरीको प्राप्त हुआ था ।।१४२६।।
सुवेग चोरकी कथामहिल नामके नगर में एक भतृ मित्र नामका श्रेष्ठो पुत्र रहता था, उसको पत्नी का नाम देवदत्ता था । वसंत ऋतुका समय था सेठ भर्तृ मित्र अपने अनेक मित्रोंके साथ वसंतोत्सवके लिये बनमें गया था। वहांपर वसंतसेन नामके मित्रने बाण द्वारा आम्र मंजरीको तोड़कर अपनी पत्नीके कर्णाभूषण पहनाये उसे देखकर देवदत्ताने अपने पति भर्तृ मित्रसे कहा-हे प्राणनाथ ! आप भी बाण द्वारा मंजरी तोड़कर मुझे दीजिये । भर्तृ मित्रको बाण विद्या नहीं आती थी अतः वह उसे मंजरी नहीं दे सका उसे बहुत लज्जा आयो । भर्तृ मित्रने मन में निश्चय किया कि मुझे बाण विद्या अवश्य सोखनी है । मेघपुर नामके नगरमें धनुर्विद्याका पंडित रहता था, उसके पास जाकर भर्तृ मित्रने बहुतसे रन देकर तथा उसको सेवा करके बाण विद्यामें अत्यंत निपुणता प्राप्त की । पुनश्च उस नगरके राजाको कन्या मेघमालाको चंद्रक वेद्य प्रणमें जीतकर उसके साथ विवाह किया। दोनों सुखपूर्वक रहने लगे। किसी दिन भरी मित्रके घरसे समाचार आनेसे उसने राजासे विदा लो । राज वैभवके साथ रथमें सवार हो मेघमाला एवं भर्तृ मित्र महिल नगरको ओर जा रहे थे। रास्तेमें बनमें भोलोंको पल्ली आयी । वनमें आगत पथिकोंको लूटना ही उन भोलोंका काम था उनका सरदार सुवेग नामका था । सुवेग मेघमालाका मनोहर रूप देखकर मोहित हुआ और उसका अपहरण करने के लिये युद्ध करने लगा । मेघमाला उसका मन युद्धसे विचलित करने के लिये उसको तरफ जाने लगो। सुवेग उसके रूपको देखने लगा इतने में भर्तृ मित्रने बाण द्वारा उसके दोनों नेत्र नष्ट कर दिये उससे सुवेग घायल हो मृत्युको प्राप्त हुआ । भत मित्र मेघमालाके साथ निर्विघ्नरूपसे अपने नगर में पहुंच गया ।
इस प्रकार सुवेग नेत्रेन्द्रियके विषयमें आसक्त होकर मृत्युको प्राप्त हुआ।
कथा समाप्त ।