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________________ ४१२ मराकण्डिका मर्त्यमांसरसासक्तः कांपिल्यनगराधिपः । राज्यभ्रष्टोमृतःप्राप्तो भीमः श्वभ्रमुरुव्यथाम् ॥१४२५।। नामका संगीताचार्य अपने पांचसौ शिष्योंके साथ उस नगरीमें आया। राजकन्याकी प्रतिज्ञासे वह परिचित हुआ। उसने राजासे कहा कि आपकी कन्या गान विद्या में चतुर है मैं भी इस विद्यासे परिचित हूं। मैं आपकी पुत्रीका गीत-संगीत सुनने का इच्छुक हूँ। इसतरहकी युक्तिसे उसने गंधर्वदत्ताके महलके पास अपना निवास स्थान प्राप्त किया । मध्य रात्रिके अनंतर शांत वातावरणमें वीणाके झंकारके साथ उसने सुमधुर गान प्रारंभ किया । गंधर्वदत्ता गहरी नींदमें सो रही थी, धीरे-धीरे उसके कर्ण प्रदेश में संगीतको लहरियां पहुंची और सहसा वह उठी । संगीतकी ध्वनिने उसको ऐसा आकृष्ट किया कि यह वेभान हो जिधरसे वह मधुर शब्द आरहा था, उधर दौड़कर जाने लगी और उसका पर चूक जानेसे महलसे गिरकर मृत्युको प्राप्त हुई । गंधर्षदत्ता को कथा समाप्त । कांपिल्य नगरका राजा भोम मनुष्य के मांसरसका भक्षक बनकर राज्यसे भ्रष्ट हुआ और मरकर नरकको महा वेदनाको प्राप्त हुआ था ॥१४२५।। भोम राजाकी कथाकांपिल्य नगरका शासक राजा भीम था वह दुर्बुद्धि मांस भक्षी होगया। नंदीश्वर पर्वमें उसे मांसका भोजन नहीं मिला तो उसने रसोइयेको कहा कि कहींसे मांस लाओ। रसोइया इधर-उधर खोजकर जब मांसको नहीं प्राप्त कर सका तो श्मशानसे मरे बालकको लाकर उसका मांस राजाको खिलाया । राजा तबसे नरमांसका लोलपी होगया । रसोइया उसके लिये गली-गलो में घूमकर छोटे-छोटे बच्चोंको कुछ मिठाई देकर इकट्ठा करता और छलसे एक बालकको पकड़कर मार देता था और उसका मांस राजाको खिलाता । नगरमें चंद दिनों बाद इस कुकृत्यका भंडाफोड़ हुआ और नागरिकोंने राजा तथा रसोइयेको देशसे निकाल दिया। दोनों पापो जंगल में घूमने लगे। राजाने भूखसे पीड़ित हो रसोईयेको मारकर खा लिया । अंत में वह पापी नरभक्षक वासुदेव द्वारा मारा गया और अपने पापका फल भोगनेके लिये नरकमें पहुंचा। कथा समाप्त ।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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