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________________ अनुशिष्टि महाधिकार सरच्यां गंधमित्राख्यो घ्राणेंद्रियवशं गतः । विषप्रसूनमानाय विपद्य नरकं गतः ॥१४२३॥ पुनिता पारतीने यन्मारगीतिः । मता गंधर्वसापि प्रासादापतिता सती ॥१४२४॥ गंधमित्र नामका राजा एक घ्राणेन्द्रिय मात्रके वश में होकर विष्णैले पुष्पको सूचकर सरयू नदी में मरकर नरक में गया था ।।१४२३।। गंधमित्र की कथाअयोध्याके नरेश विजयसेनके दो पुत्र थे, जयसेन और गंधमित्र | एक दिन राजाने बड़े पुत्र जयसेनको राजा एवं छोटे पुत्रको युवराजका पद दिया और स्वयं मुनि दीक्षा लेकर बनमें चले गये । गंधमित्रको युवराजपद अच्छा नहीं लगा, उस अन्यायीने अनेक कूटनीति द्वारा जय सेनको राज्यसे च्युत कर दिया। इससे जयसेन भी कुपित हुआ और गंधमित्रको मारने का विचार करने लगा। गंधमित्र विविध प्रकारके फूलोंको सूचने में सदा आसक्त रहता था । एक दिन रानियों के साथ वह सरयू नदीमें जलक्रीड़ा कर रहा था । जयसेनने मौका पाकर नदो के प्रवाहमें ऊपरकी ओरसे भयंकर विष जिनमें छिड़का गया है ऐसे फलोंको छोड़ दिया। गंधमित्रने उन फलोंको सूघा, उससे वह तत्काल प्राण रहित हुआ और घ्राणेन्द्रिय के विषय सुगंधिको आसक्तिके कारण नरकगतिमें उत्पन्न हुआ। इसप्रकार एक घ्राणेन्द्रियके विषयके दोषसे राजा महादुःखको प्राप्त हुआ था। ___कथा समाप्त । पाटलीपुत्र नगरीमें पंचाल नामके गायनाचार्य के मधुर गोतसे मोहित हुई गंधर्वदत्ता नामको स्त्री महल से गिरकर मर गयी थी ।।१४२४।। गंधर्वदत्ता को कथापाटलीपुत्रके नरेशकी गंधर्वदत्ता नामकी अनिद्य सुदरी राजकन्या थी वह मान विद्या महानिपुण थो उसने प्रतिज्ञा की कि जो मुझे गायन कलामें जीतेगा उसे मैं वरूगो । बहुत से राजकुमार उसकी सुदरतासे आकृष्ट होकर आये किन्तु कोई उस कन्याको जोत नहीं सका । एक दिन बहुत दूर देशसे एक गान विद्याका पंडित पंचाल
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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