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मरकण्डिका
मधुलिप्तामसेर्घारा तीक्ष्णां लेढि स मूढधीः । इंद्रियार्थं सुखं भुक्ते यो लोकद्वयदुःखदं ||१४२० ॥
यथाक्रमम्
रूपशब्द रसस्पर्शगंधा सक्ता
पतंग मृगमीने भभ्रमराः
प्रलयं
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।। १४२१।।
गताः
रूपशब्वरसस्पर्श गंधानां
यदि हन्यते ।
एकैकेन तदा कस्य सौख्यं पंच निषेविणाम् ॥ १४२२॥
इसप्रकार सामान्य रूपसे इन्द्रिय और कषायोंके दोष कहे हैं । अब विशेष रूप से इन्द्रियके दोष दस श्लोकों द्वारा कहते हैं-
वह मूर्खबुद्धि तलवार की शहद लिपटी पैनीधारको चाटता है जो कि इस लोक
और परलोकमें दुःखदायी ऐसे इन्द्रियोंके विषयोंको सुख मानकर भोगता है। शहद लिपटी तलवारको चाटनेवाला जैसे तत्काल किंचित मीठेका सुख अनुभव करता है किन्तु जीभ कटनेपर महादुःख ही पाता है वैसे इन्द्रियोंके भोग किंचित् सुखकर प्रतीत होते हैं किन्तु वे उभयलोक में दुःखदायी ही होते हैं ।। १४२०॥
दोषकका चमकीला रूप देखने में आसक्त पतंग जलकर नष्ट होता है इसीप्रकार यथाक्रमसे शब्द, रस, स्पर्श और गंध में आसक्त हुए मृग, मीन, हाथी और भ्रमर ये नाशको प्राप्त होते हैं ।। १४२१ ॥
भावार्थ-व्याधके बांसुरीका मधुर शब्द सुनकर हिरण उसके जाल में फंसकर नष्ट होते है । वोरके जाल में लगे हुए खाद्य में आसक्त हुई मछलियां उसी जाल में फंसकर मर जाती हैं। सल्लको वनमें स्वच्छंद विचरण करनेवाला हाथी नकली हथिनी का स्पर्श करनेका इच्छुक होता हुआ गर्त्तमें गिरकर भूख-प्यास आदिका महादुःख भोगता हुआ नकली हथिनीको बनानेवाले व्यक्तिके वशमें आ जाता है । कमलकी सुगंधिमें आसक्त भ्रमर उसी कमलमें बंद होकर मर जाता है ।
जब रूप, शब्द, रस, स्पर्श और गंध इन पांच विषयों में से एक-एक विषयका सेवन करने से ये पतंग आदि प्राणी नष्ट हो जाते हैं तो फिर पांचों ही इन्द्रिय विषयोंका सेवन करने वालोंको कौनसा सुख होगा ? अर्थात् उन जोवोंको सुख अल्प भी नहीं होगा उल्टे महादुःख ही होता है ।। १४२२ ।