SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुशिष्टि महाधिकार [ ३७३ छंद रथोद्धताबद्धसंयमतपः पराक्रमः शुद्धगुप्तिकरणोऽपि ना ततः । याति जन्मजलधिसुस्तरं कापरस्य गणना कुचेतसः ॥१२७७॥ निदानं योऽल्पसौख्याय विधत्ते सौख्यनिस्पृहः । काकिण्या स मणि वसे शंके कल्याणकारणम् ॥१२७८।। स सूत्राय मणि भिन्ते नावं लोहाय भस्मने । कुधीर्वहति गोशीर्ष निदानं विदधाति यः ॥१२७६॥ तापाथं सपा कुण्टो व रम्ने रसायनम् । श्रामण्यं नाश्यते तेन भोगार्थ सिद्धिसाधकम् ॥१२८०॥ सागरको प्राप्त होता है अर्थात् संसारमें परिभ्रमण करता है, तो फिर अन्य सामान्य व्यक्ति की तो क्या मिनली है ? वह तो संसार सागर में डूबेगा ही ।।१२७७।। जो व्यक्ति उत्कृष्ट सुखका-मुक्ति सुख का अनादर करके अल्प तुच्छ ऐसे संसार सुखके लिये निदान करता है, वह काकिनो-कौडोके लिये सुखकारक मणिको दे डालता है । मणि रत्न को तो शंका करता है कि यह उपयोगी है या नहीं और इसीलिये अपने पास की उस मणिको किसीके लिये देकर उसके बदले में कौडो खरीदता है ।।१२७८।। जो पुरुष निदान करता है वह कुबुद्धि धागेके लिये रत्नहार तोड़ता है, लोहे के लिये नौकाको तोड़ डालता है, राख के लिये गोशीर्ष चन्दन जलाता है, ऐसा मानना चाहिये । अर्थात् जैसे एक डोरेके लिये रत्नहार तोड़ना मूर्खता है, लोहेके लिये नौका तोड़ना मुर्खता है और राखके लिये गोशोर्ष चंदन को जलाना मुर्खता है, इसमें हानि बहुत अधिक है और लाभ कुछ भी नहीं उसोप्रकार व्रत पालन आदिको करके जो भोग की आकांक्षा करता है और उसमे कदाचित् तुच्छ सांसारिक किंचित् भोग प्राप्त करता है तो बड़ो भारी मूर्खता है, व्रत पालन आदि तो मुक्ति सुखका कारण है उसको निदान करने वाला नष्ट कर डालता है ।।१२७६।। । जैसे कोई कुष्ठो व्यक्ति रसायन स्वरूप इक्षुको पाकर उसे तपने के लिये जला देता है तो अज्ञानी है, अपनी बड़ी भारो हानि करता है वैसे ही मुक्तिदायक जो श्रामण्य था उसे भोगके लिये कोई नष्ट कर डालता है वह उसकी बड़ी भारी हानि है ।।१२८०।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy