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________________ ३७० मरणकण्डिका महानतानि जायते निःशल्यस्य तपस्विनः । निदानवंचना मिथ्यादर्शनैर्हन्यते व्रतम् ॥१२७१॥ ___ साधुओंके दिनरातमें होनेवाली सामायिक, प्रतिक्रमण आदि क्रियाओंको करते समय अट्ठावीस कायोत्सर्ग होते हैं---प्रातःकालोन आदि तीन संध्याओंके तीन सामायिक क्रियाओंमें चैत्यभक्ति पंचगुरु भक्ति संबंधी दो-दो कायोत्सर्ग ऐसे छह हुए पुनः देवासिक और रात्रिक प्रतिक्रमणके चार-चार ऐसे आठ कायोत्सर्ग हैं। पूर्वाह्न, अपराह्न, पूर्व रात्रिक और पश्चिम रात्रिक ऐसे चार बेलाओंके चार स्वाध्यायोंमें प्रत्येकके तोन-तीन कायोत्सर्ग होते हैं ऐसे बारह हुए । रात्रियोग-प्रतिष्ठापन निष्ठापन क्रियामें योगभक्तिके दो कायोत्सर्ग इसतरह कुल अट्टावीस कायोत्सर्ग अवश्य करणीय हैं । यह तो प्रतिदिनमें होनेवाले कायोत्सर्गको बात है। अष्टमी चतुर्दशो, नंदीश्वर आदि पर्वो में होनेवाली नमित्तिक क्रियायें तथा इनमें होने वाली भक्तियां एवं इन सब क्रियाओंकी प्रयोग विधियां क्रिया कलाप, यतिक्रिया मंजरो, श्रमणचर्या आदि शास्त्रोंसे ज्ञात करना चाहिये । व्रतोंके परिणामोंका घात करनेवाले शल्य हैं अब उन परित्याज्य रूप शल्योंका वर्णन करते हैं-- जो तपस्वी निःशल्य है उसके महावत होते हैं क्योंकि निदान, माया और मिथ्यात्व इन तोन शल्यों द्वारा व्रतोंका घात होता है ।।१२७१।। भावार्थ-शल्य कांटेको कहते हैं जैसे कांटा परमें लगकर बाधा करता है वैसे जो व्रतोंको बाधित करे उसको यहां शल्य कहा है। उसके तीन भेद हैं तत्वोंके अश्रद्धा रूप परिणाम मिथ्यात्व शल्य है । माया छल कपटको कहते हैं । अमुक धार्मिक अनुष्ठानसे मुझे यह भोग प्राप्त हो इत्यादि परिणाम निदान शल्य है । यह तीन शल्योंका सामान्य लक्षण है। मिथ्यात्व सम्यक्त्वका घातक है और सम्यक्त्वके बिना सम्यक्चारित्र, वत नहीं होता अतः मिथ्यात्व वतका घातक सिद्ध होता है । साधुका रत्नत्रय धर्म के अतिरिक्त भोगादिमें मन जाना निदान है यह भी सम्यक्त्वमें अतीचार करता हुआ बतका घात करेगा साधु संबंधी माया तो अपने अतीचारोंको छिपाना आदि रूप होगी ।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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