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________________ अनुशिष्टि महाधिकार [ ३६६ विशेषार्थ--अब यहांपर साधुओंकी (तथा आर्यिकाओंकी) दिनचर्याका वर्णन करते हैं सूर्योदय होनेपर देव वंदना करके दो घड़ो (४८ मिनट) बीत जानेपर श्रुतभक्ति और आचार्य भक्तिपूर्वक स्वाध्याय ग्रहण करके सिद्धांत आदि ग्रंथोंकी वाचना पृच्छना, अनुप्रेक्षा आदि करके मध्याह्न कालसे दो घड़ी पहले श्रुतभक्ति पूर्वक स्वाध्याय समाप्त करे फिर वसतिसे दूर जाकर मलका त्याग करे। फिर शरीरकी शुद्धि करे, मध्याह्न देववंदना-सामायिक करनेके बाद बालक आदि भोजन करके निकलते हुए देखकर आहारको वेलाको जानकर आहारके लिये गमन करे, रास्ते में न धीरे चले न शीघ्रतासे चले । धनी निर्धनका विचार न करके केवल कुलवान् घरको देखकर जो श्रावक पड़गाहन करे वहां रुके, नवधा भक्तिपूर्वक दिये हुए भोजनको सिद्धभक्ति करके ग्रहण करे | नीचे भोज्य वस्तुको नहीं गिराते हुए पाणिपात्रको नाभिके प्रदेशके कुछ ऊपर हाथोंको अंजुलि बांधकर मुख से सुर सुर आदि शब्दको नहीं करते हुए आहार लेवे, उस समय स्त्री आदि दाताके अवयवोंका निरीक्षण नहीं करना चाहिये । छियालीस दोषोंको टालकर और बत्तोस अंतरायको टालकर आहार लेवे। अंतराय आजाय तो अपूर्ण उदर ही प्रासुक जलसे हाथ आदिकी शुद्धि कर सिद्धभक्ति पूर्वक दूसरे दिन तकके लिये आहारका त्याग करे | अंतराय नहीं आवे तो पूर्णोदर भोजन कर उक्त विधि करे । कमंडलूको उष्ण जलसे भरकर जिनालय आदि स्थान में जाकर पुनः प्रत्याख्यान करे । तदनंतर अपराह्निक स्वाध्याय करता रहे। दिन अस्त होनेके दो घड़ी पूर्व स्वाध्याय निष्ठापन करे देवासिक प्रतिक्रमण करे | पुनः देववंदना-सामायिक करे। सामायिकके अनंतर पूर्व रात्रिक स्वाध्याय प्रारंभकर मध्यरात्रिके दो घड़ी पूर्व स्वाध्याय समाप्त करना चाहिये । दो मुहूर्त अल्प निद्रा लेवे । पुन: अपर रात्रिक स्वाध्याय सूर्योदयके दो घड़ी पूर्वतक करना, किन्तु इस अपर रात्रिमें सिद्धांत ग्रंथकी याचना नहीं करना चाहिये । फिर रात्रिक प्रतिक्रमण करना चाहिये । इसप्रकार दिन और रातके चौबीस घंटेको साधुकी यह दिनचर्या है । विशेष ज्ञातव्य यह है कि वर्तमान में गृहस्थोंको भोजनबेला प्रायः दस बजे से ग्यारह-बारह बजे तक है तदनुसार मध्याह्नके सामायिक पूर्व ही साधुजन आहारको निकलते हैं और फिर सामायिक करते हैं इसमें कोई दोष नहीं है क्योंकि साधुका आहार योग्यकाल सूर्योदय की तीन बड़ी (७२ मिनट) बीत जानेपर प्रारंभ होता है पौर सूर्यास्तके तीन घड़ी पहले तक शेष रहता है ।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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