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अनुशिष्टि महाधिकार की भावना उभय ग्रंथमें समान है। तीसरे अचौर्यव्रतकी भावना तत्वार्थसूत्र में शून्यागार में निवास, विमोचितवास, पर उपरोध अकरण, भैक्ष्यशुद्धि और साधर्मीसे अविसंवाद ये पांच भावनायें बतलायी हैं और इस मरणकंडिका ग्रंथमें असंमतका अग्रहण, संमतबस्तुमें अनासक्ति, दीयमान वस्तु में अपने लिये उपयुक्तका ग्रहण, बिना आज्ञाके वसति आदि प्रवेश नहीं करना और योग्य वस्तुकी याचना करना ये पांच भावना बतलायी है। इन दोनोंमें अंतर स्पष्टतया दिखायी देता है । तत्वार्थसूत्रकी भावना इसप्रकार की है कि जिसकारणसे चोरीके भाव होना संभव है उस उस कारणका निषेध हो । इस ग्रंथ में किसी भी वस्तुके प्रति अपनत्व-ममत्व आसक्ति न हो इसप्रकारको भावनायें बतलायी हैं सो ठोक हो है क्योंकि ममत्व आदिके कारण चोरी करने में प्रवृत्ति होती है। चौथे ब्रह्मचर्य व्रतको भावनामें थोड़ा अंतर है स्त्रोकथा श्रवण, स्त्रीरूप अवलोकन, पूर्वरतानुस्मरण, वृष्येष्ट रस सेवन और स्वशरीर संस्कार इन पांचोंका त्याग करना पांच भावना है यह तत्त्वार्थ सूत्र निर्दिष्ट है । इस ग्रन्थ में स्त्रोकथा श्रवणके स्थान पर स्त्रीके साथ संभाषण लिया है और वृष्येष्ट रस सेवनने स्थानपर स्थी संगमित जशति दी है। पांचवें व्रतकी भावना उभयत्र समान है। इसीप्रकार मूलाचार पाक्षिक प्रतिक्रमण आदिमें इन भावनाओंका वर्णन विभिन्न प्रकारसे उपलब्ध होता है किन्तु अभिप्राय सर्वत्र तद्तद् व्रतोंको स्थिरता जिससे हो बही लिया है । व्रत स्थिरताके विभिन्न अनेक कारण संभव हैं अतः भावनाओंके कथनमें विभिन्नता है।
विशेष बात यह है कि तत्वार्थ सूत्रमें सातवें अध्यायमें श्रावकोके बारह व्रतों का वर्णन है । सर्वप्रथम सामान्य रूप व्रतका लक्षण कर पुनः उस व्रतके अणुव्रत और महाव्रत ऐसे दो भेद किये हैं, तदनंतर भावनाओंका वर्णन है। इससे कोई कोई व्यक्ति प्रश्न करते हैं कि ये भावनायें अणुवतकी हैं या महावतको ? यदि महावतको है तो अणुवतका वर्णन करनेवाले इस अध्यायमें उनका कथन क्यों ? यदि अगुवतकी मानते हैं तो मनोगुप्ति आदिरूप भावनायें गृहस्थके कैसे संभव है ?
उत्तर यह है कि ये भावनायें महावतको हैं, अणवतकी नहीं। मूलाचार, भगवती आराधना यह मरणकडिका प्रादि ग्रन्थों में भावनाओंका वर्णन उस स्थान पर आता है जहां पांचों महावतोंका वर्णन पूर्ण हो चुकता है। इससे निश्चित होता है कि ये भावनायें महावतोंकी ही हैं ।
फिर प्रश्न शेष रहता है कि तत्त्वार्थसूत्र में अणुव्रतोंके वर्णनमें भावनाओं को