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________________ ३६६ ] महिला लोकनालाप बासं संसक्तवस्तूनां मरकण्डिक चिरंतनरतस्मृति । बलिष्ठाहारसेवनम् ॥१२६५।। योगिनो मुच्यमानस्य विरागीभूतचेतसः । तुरीये भावनाः पंच संपद्यते महाव्रते ।। १२६६ ॥ यतेः स्पर्शे रसे गंधे वर्णे शब्वे शुभाशुभे । रागदेषपरित्यागो भावना: पंच पंचमे ।।१२६७ ॥ प्रकारके कार्योंको छोड़ देनेवाले विरागी चित्तवाले साधुके चौथे ब्रह्मचर्यं महाव्रतकी पांच भावना संपन्न होती हैं प्रर्थात् स्त्री रूपका अवलोकन नहीं करना, स्त्रियों से वार्तालाप नहीं करना, पूर्व भुक्त भोगका स्मरण नहीं करना, स्त्रीसे संसक्तवसति में नहीं रहना और बलिष्ठ आहारका सेवन नहीं करना ये पांच भावना ब्रह्मचर्य नामके चौथे व्रतको कही गयी हैं ।। १२६५।। १२६६।। पांचवें व्रतकी भावना - शुभ और अशुभ स्पर्श, रस, गंध वर्ण और शब्द में क्रमशः राग और द्वेषका त्याग कर देना साधुके पांचवें परिग्रह त्याग महाव्रतकी पांच भावना जानना चाहिये अर्थात् पांच प्रकारके मनोज्ञ विषयों में राग तथा पांच प्रकारके अमनोज्ञ विषयोंमें द्वेष नहीं करना इसप्रकारकी पांच भावना परिग्रह त्याग व्रतकी होती हैं ।। १२६७।। विशेषार्थ - प्रत्येक महाव्रतोंको दृढ़ करनेके लिये पांच पांच भावनायें हैं । बार बार विचार करना भावना है जिसप्रकार औषधिमें आंवला आदिके रसकी भावना देने से उस औषधिका गुण धर्म या शक्ति अधिक अधिक बढ़ती है उसमें रोग नाशक शक्ति शतगुणी या सहस्रगुणी बढ़ती है उसीप्रकार इन भावनाओंके द्वारा महाव्रतोंकी शक्ति बढ़ती है उनसे अधिक अधिक कर्मरूपी रोग नष्ट होते हैं अर्थात् कर्म निर्जरा होती है । इन भावनाओं का वर्णन अनेक आचार्योंने किया है। उन भावनाओंके कथन में कुछ विभिन्नतायें दृष्टिगोचर होती हैं । जैसे—तत्त्वार्थ सूत्र में मनोगुप्ति, वचन मुप्ति, ईर्यासमिति, आदान निक्षेपण समिति और आलोकित पान भोजन ये अहिंसा व्रतकी पांच भावना है। इस ग्रंथ में वचनगुप्ति के स्थानपर एषणा समिति ली है । सत्य महाव्रत
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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