________________
३६४ ]
अनुशिष्टि महाधिकार
यदा तदा ततश्चेष्टां चिकीर्ष समितो भव । पुराणं क्षिप्यते कर्म नाप्नोति समितो नधम् ॥१२५६॥ रातिमातरोऽष्टौ ताः पांति रत्नत्रयं पतेः । अनन्यो यत्नतो नित्यं तनुजस्येव जीवितम् ॥१२६०॥ मनोगुप्त्येषणादाननिक्षेपेक्षिताशिताः । महावते मता जैनैरादिमाः पंच भावनाः ॥१२६॥ हास्यलोभभयकोधप्रत्याख्यानानि योगिनः । सूत्रानुसारि वाक्यं च वित्तीये पंच भाषनाः ॥१२६२॥
किन्तु बाल अज्ञानी तो पापोंसे बंध जाता है और इससे विपरोत मुनिजन ज्ञानी पुरुष उलटे उन पापोंसे छूट जाते हैं ।।१२५८।।
इसप्रकार समितियोंका माहात्म्य जानकर है क्षपक ! तुमको जब जब भी चेष्टा क्रिया करने की इच्छा होती है तब तब समितियोंमें तत्पर होवो। समिति धारी साधुके पुराना कर्म नष्ट होता है और नवीन कर्म बंवता नहीं ॥१२५६।।
पांच समिति तीन गुप्तिरूप आठ प्रवचन माता यतिके रत्नत्रयको रक्षा करतो है, जैसे माता बालकके जीवन को नित्य ही यत्नपूर्वक रक्षा करती है ॥१२६०।।
इसप्रकार पंचमहाव्रत पंच समिति और तोन गुप्तिरूप त्रयोदश प्रकारका चारित्रका वर्णन पूर्ण हुआ । इन तेरह प्रकारके चारित्रका अखंडरीत्या पालन करनेवाले मुनिके चारित्र आराधना होती है ।
अब आगे अहिंसा आदि पांच व्रतोंको प्रत्येकको पांच पांच भावनाओंका वर्णन करते हैं । सर्वप्रथम अहिंसा व्रत की भावना बतलाते हैं
मनोगुप्ति एषणा समिति ईर्यासमिति, आदान निक्षेपण समिति और आलोकित पान भोजन इन महावतोंमें जो पहला महाव्रत अहिंसा है उसकी पांच भावना नोंद्वारा मानो गयी हैं। मनोगप्ति आदि चारोंका लक्षण तो अभी कह दिया है। स्पष्टतया सूर्यके प्रकाश में ही चार प्रकारके आहारका शोधन करके ग्रहण करना आलोकित पान भोजन कहलाता है ।।१२६१।।