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________________ ३६२ } मरणकण्डिका सहसाइष्टदुरष्टाप्रत्यवेक्षणमोचिनः । भवत्यादाननिक्षेपसमिति सतिनः ॥१२५३॥ अमय रेस प्रति नका मता । समितिस्त्यजतस्त्याज्यं प्रदेशे स्थंडिले यतेः ॥१२५४॥ २६. अदत्तग्रहण-नहीं दो हुई किचित् वस्तु ग्रहण कर लेने पर । ३०. प्रहार-अपने ऊपर या किसीके ऊपर शत्रु द्वारा शस्त्रादिका प्रहार होने पर। ३१. नामदाह-ग्राम आदिमें उसी समय आग लग जानेपर । ३२. पादेन किंचिद्ग्रहण-पादसे किंचित् भी वस्तु ग्रहण कर लेनेपर । इन बत्तीस कारणोंके मिलने पर साधुजन आहारका त्याग कर देते हैं । आदान निक्षेपण समितिपोछी, शास्त्र, चौकी आदि पदार्थोंको देख सोधकर रखना और उठाना आदान निक्षेपण समिति है । पदार्थों को रखते उठाते समय नेत्रोंसे नहीं देखना और पीछीसे नहीं शोधना सहसा नामका दोष है । देखा नहीं किन्तु शोधनकर बस्तु रखा उठाया वह अदृष्ट या अनाभोग नामका दोष है । देखा तो सही किन्तु पोछीसे शोधन किये विना वस्तुको रख दिया या उठाया तो यह दुष्ट या दुष्प्रमुष्ट नामका दोष है। देखा और सोधा किन्तु उन्मनस्कतासे उक्त क्रिया को है तो यह अप्रत्यवेक्षित नामका दोष है । इन दोषोंको छोड़कर भली प्रकारसे वस्तुका ग्रहण करना साधुको आदान निक्षेपण नामको समिति है ।।१२५३।।। प्रतिष्ठापना समितिजिसप्रकार आदान निक्षेपण समितिमें देख शोधकर वस्तुका रखना होता है उसीप्रकार स्थडिल प्रदेश जन्तु रहित छिद्र रहित प्रदेश में मल मूत्रका त्याग करना साधुको प्रतिष्ठापना नामकी समिति कहलाती है ।।१२५४।। भावार्थ-साधुजन मलमूत्रका विसर्जन निर्जंतुक स्थानमें करते हैं, जो स्थान वसतिसे दूर हो, रुकावट रहित हो, हरितकायसे रहित गूढ, विशाल ऐसे पर्वतका
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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